पिछले लगभग एक हफ़्ते से हम उन लाखों मज़दूरों को भूखे-प्यासे सड़कों पर देख रहे हैं जो किसी तरह अपने वतन, अपने घर-गाँव पहुँच जाना चाहते हैं। शहरों ने इन्हें निकाल दिया है और गाँव तक पहुँचने के ज़रिए बंद कर दिए गए हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके कि जान हथेली पर रखकर निकल पड़ें। घर पहुँच गए तो ठीक नहीं तो रास्ते में ही दम तोड़ देंगे। रास्ते में कुछ लोगों की मौत भी हो चुकी है।