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सोनाक्षी सिन्हा पर कुमार विश्वास का तंज़ संविधान पर मनुस्मृति का वार!

बाल्ये पितुर्वशे तिष्ठेत्पाणिग्राहस्या यौवने।

पुत्राणं भर्तरि प्रेते न भजेत्स्रीस्वतनत्रताम्।। (5/148, मनुस्मृति)

(अर्थात- स्त्री बाल्यकाल में पिता के, जवानी में पति के और पति के मरने के बाद पुत्रों के अधीन होकर रहे। वह कभी स्वतंत्र न रहे।)

“वैदिक संविधान का नाम मनुस्मृति है। जीवन को सार्थक बनाने के लिए मनु ने जो कहा है, उसका पालन करना चाहिए”- शंकराचार्य स्वामी निश्चलनानंद सरस्वती का 17 दिसंबर 2024 को पुणे में दिया गया बयान।

लोकसभा में हुई संविधान पर बहस के दौरान जब नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने कहा कि आज लड़ाई संविधान और मनुस्मृति के बीच है तो बहुत लोगों ने इसे बेवजह क़रार दिया। आलोचकों का कहना है कि मनुस्मृति अतीत की चीज़ है जिसका मौजूदा समाज से कोई लेना देना नहीं है। वे शंकराचार्य के ताज़ा बयान को भी हाशिये की चीज़ मानते हैं, लेकिन फ़िल्मस्टार सोनाक्षी सिन्हा की शादी को लेकर स्वयंभू ‘युग-कवि’ कुमार विश्वास ने पिछले दिनों जो कुछ कहा, वह बताता है कि समाज के बड़े हिस्से का दिमाग़ आज भी मनुस्मृति से संचालित होता है और गाहे-बगाहे उसका विष बाहर आ जाता है। ख़ासतौर पर जब बात स्त्रियों की आज़ादी की हो।

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कुमार विश्वास ने हाल ही में आयोजित मेरठ महोत्सव के कवि सम्मेलन में कहा, “अपने बच्चों को सीता जी की बहनों के बारे में बताएँ। भगवान राम के भाइयों के नाम याद करायें। संकेत के माध्यम से कह रहा हूँ, जो समझ जायें वो ताली बजायें… ऐसा न हो कि आपके घर का नाम ‘रामायण' हो और आपके घर की श्री-लक्ष्मी को कोई और लेकर चला जाये।”

कुमार विश्वास का संकेत बहुत साफ़ था। ‘रामायण’ फ़िल्म अभिनेता और सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के मुंबई स्थित आवास का नाम है। उनकी बेटी और नये दौर की क़ामयाब फ़िल्म स्टार सोनाक्षी सिन्हा ने कुछ समय पहले अपने दोस्त ज़हीर इक़बाल के साथ शादी की थी जिसकी काफ़ी चर्चा हुई थी। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए ‘लव जिहाद’ के ख़तरे का प्रचार करने में जुटे दक्षिणपंथी ख़ेमे ने इस पर काफ़ी हो-हल्ला मचाया था। कुमार विश्वास को निश्चित ही ख़ुशी हुई होगी जब उनके ‘संकेत' को समझते हुए श्रोताओं ने उनके जुमले पर भरपूर तालियाँ बजायीं।

अन्ना आंदोलन के दौरान रात-दिन हुए टीवी प्रसारण के ज़रिए घर-घर पहुँचे कुमार विश्वास जब 2014 में अमेठी से राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने गये थे तो उन्होंने अपना असल नाम ‘विश्वास कुमार शर्मा’ बताते हुए बार-बार 'ब्राह्मण का बेटा’ होने की दुहाई दी थी। बहरहाल, बुरी तरह चुनाव हारने के बाद वे दिल्ली वापस लौटे और जल्द ही केजरीवाल से कटुतापूर्ण विवाद के बाद कवि-सम्मेलनों की दुनिया में वापस लौट गये। इस पूरी उठापटक के बीच ‘जो दिखता है, सो बिकता है’ के सिद्धांत का पालन करते हुए न्यूज़ चैनलों ने उन्हें बार-बार दिखाया और कुछ कार्यक्रमों में वे एंकर बनकर भी आये। ‘गले-बाज़ी’ में माहिर कुमार विश्वास को जल्दी ही इस माध्यम की ताक़त का अहसास हो गया और वे कवि-सम्मेलनों के साथ-साथ कथा-वाचन के व्यवसाय में भी उतर पड़े। अब वे स्टार कथावाचक हैं। ‘अपने-अपने राम’ शीर्षक से होने वाले उनके शो की फ़ीस का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है, लेकिन यह आयोजन कराना करोड़पतियों के ही वश की बात है, इसमें कोई शक़ नहीं है।
ख़ैर, कुमार विश्वास को पूरा हक़ है कि वे कथा-वाचन करें, लेकिन अपनी स्टार-वैल्यू और धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करते हुए वे भारतीय संविधान को चुनौती देने लगें, यह कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है?

वे भूल गये हैं कि यह ‘आंबेडकर युग’ है। बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अगर महात्मा गाँधी के नेतृत्व में भारत की आज़ादी का सवाल महत्वपूर्ण था और उत्तरार्द्ध में नेहरू के नेतृत्व में आधुनिक भारत की मज़बूत बुनियाद की चुनौती थी तो इक्कीसवीं सदी में डॉ. आंबेडकर के उठाये सामाजिक मुक्ति के प्रश्न को अंजाम तक पहुँचाने की चुनौती प्रमुख है। यह दलितों और स्त्रियों के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों की ही विभिन्न धार्मिक कथाओं में ‘ग़ुलामी' का समान दर्जा प्राप्त है।

सोनाक्षी सिन्हा ने भारतीय संविधान से प्राप्त अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए जीवन साथी का चयन किया है। विशेष विवाह अधिनियम-1954 किसी भी युवा को यह अधिकार देता है कि वह जाति, धर्म या किसी भी सांस्कृतिक भेद से परे जाकर विवाह करे। यह डॉ. आंबेडकर के प्रस्तावित ‘हिंदू कोड बिल’ का ही नतीजा है जिसके विरोध में आरएसएस, हिंदू महासभा और राज-राज्य परिषद ने देश भर में उनके पुतले फूंके थे। इससे दुखी होकर डॉ. आंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था। बाद में नेहरू जी ने हिंदू कोड बिल को टुकड़ों-टुकड़ों में पारित कराया। डॉ. आंबेडकर के निधन के बाद श्रद्धांजलि देते हुए नेहरू जी ने कहा भी था, “आंबेडकर सबसे ज़्यादा जिस बात के लिए याद रखे जाएँगे, वह यह कि वे हिंदू समाज में व्याप्त शोषण और अन्याय के ख़िलाफ़ विद्रोह के प्रतीक थे। लेकिन वे इस बात के लिए भी याद रखे जाएँगे कि उन्होंने हिंदू सुधार क़ानून का ज़िम्मा अपने हाथों में लिया और इसके लिए काफ़ी तकलीफ़ें उठाईं। मुझे इस बात की ख़ुशी है कि उन्होंने इस सुधार को बड़े ही व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा। उन्होंने इसे भीमकाय कार्य के रूप में नहीं बल्कि टुकड़े-टुकड़े में ध्यान से देखा जिसका मसौदा उन्होंने ख़ुद तैयार किया था।”

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लेकिन कुमार विश्वास की नज़र में सोनाक्षी सिन्हा, पिता शत्रुघ्न सिन्हा के घर में रखा हुआ ‘सामान' थीं। 'धार्मिक शिक्षाओं’ पर ध्यान न देने की वजह से कोई ‘अन्य’ इस सामान को ‘लूट’ ले गया। कुमार विश्वास इस बात को मानने से इंकार कर रहे हैं कि सोनाक्षी सिन्हा के पास अक्ल भी है और वह अपने विवाह का फ़ैसला कर सकती हैं। ऐसे ही लोगों को निशाना बनाते हुए प्रथम लोकसभा की सदस्य चुनी गयीं शिवराजवती नेहरू ने कहा था कि "एक तरफ़ पुरुष राजनीतिज्ञ आर्थिक और राजनीतिक सुधारों पर बड़ी लंबी चौड़ी बातें करते हैं लेकिन वे सामाजिक जीवन और रीति रिवाजों में एक भी सुधार नहीं चाहते। हिंदू समाज में पुरुष पूर्ण स्वतंत्र है जबकि महिला उससे बँधी हुई है। अभी भी पुरुष अपनी पत्नी को पैर की जूती समझते हैं जिसे वे जब चाहे उठाकर फेंक दें।” और सांसद सुभद्रा जोशी ने तो पारंपरिक विवाह के रीति रिवाजों पर कड़ा प्रहार करते हुए यहाँ तक कह दिया था कि “इसके लिए महिलाओं को शर्म और ज़िल्लत भरी ज़िंदगी जीने के लिए लगभग बेच दिया जाता है।”

ज़ाहिर है, सोनाक्षी सिन्हा को मिले क़ानूनी अधिकार संघर्ष की एक लंबी परंपरा का नतीजा है जिसे कुमार विश्वास बद्दुआ ही दे सकते हैं, चुनौती नहीं। अन्ना आंदोलन के दौरान रामलीला मैदान में ‘ओठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो’ जैसी तुकबंदियाँ गाकर टीवी कैमरों को ‘देशभक्ति का इंस्टैंट विज़ुअल’ मुहैया कराने वाले कुमार विश्वास भूल जाते हैं कि देश कुछ निश्चित विचारों से बनता है। कुमार विश्वास की नज़र में भारत राष्ट्र हज़ारों साल पुराना होगा लेकिन डॉ. आंबेडकर के 'सपनों का राष्ट्र’ अभी बनने की प्रक्रिया में है। डॉ. आंबेडकर का कहना था कि जब तक जाति-प्रथा नहीं टूटेगी तब तक भारत वास्तव में ‘राष्ट्र’ बन ही नहीं सकता। जाति-प्रथा तोड़ने का उन्होंने यही उपाय बताया था कि विवाह संबंध अपने कुल से बाहर हों। जाति-प्रथा जिस रक्त की शुद्धता के आधार पर मज़बूत होती है उसके नाश का यही उपाय है कि बड़े पैमाने पर अंतरजातीय विवाह हों। इस परियोजना में अंतरधार्मिक विवाह भी आते हैं।

जो लोग अंतरजातीय विवाह को स्वीकार नहीं कर पाते वे अंतरधार्मिक विवाह कैसे स्वीकार कर सकते हैं? लेकिन भारत के युवाओं के पास ऐसा करने का क़ानूनी अधिकार है और वे इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं।
‘लव जिहाद’ का शोर मचाने वालों को ‘लव जिहादिनों’ पर भी नज़र डालनी चाहिए। अगर सोनाक्षी सिन्हा ने किसी मुस्लिम लड़के से शादी की है तो ऋतिक रोशन से लेकर मनोज वाजपेयी तक कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने मुस्लिम लड़की से शादी की है। दरअसल, ये शादियाँ किसी के घर पड़ी ‘लक्ष्मी की लूट’ नहीं बल्कि प्रेम-संबंध का परिणाम हैं जिसके सामने जाति या धर्म गौण हो जाते हैं।
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दरअसल, सोनाक्षी और कुमार विश्वास दो विचारधाराओं के प्रतिनिधि हैं। सोनाक्षी सिन्हा डॉ. आंबेडकर के लिखे संविधान की बेटी है जबकि कथावाचक कुमार विश्वास की ज़बान से वही मनुस्मृति झर रही है जिसे शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ‘वैदिक संविधान’ बताते हैं और  सावरकर वेदों के बाद सबसे पवित्र ग्रंथ बता चुके हैं। आरएसएस के प्रेरणापुरुष सावरकर ने कहा था, “हमारे हिंदू राष्ट्र में वेदों के बाद मनुस्मृति जैसा ग्रंथ ही है जो पूजनीय समझा जाता है और जो अतीत के दिनों से ही हमारी संस्कृति, रीतिरिवाज, विचार और आचार का आधार रहा है। सदियों से इस ग्रंथ ने हमारे राष्ट्र की आध्यात्मिक एवं दैवी यात्रा को संहिता-बद्ध किया है। आज भी तमाम हिंदू जिन नियमों का पालन करते दिखते हैं, वह मनुस्मृति पर आधारित होते हैं। आज मनुस्मृति ही हिंदू क़ानून है।” (सावरकर समग्र, खंड-4, पेज 415)

इसलिए सोनाक्षी सिन्हा पर कुमार विश्वास का तंज़ संविधान पर किया गया मनुस्मृति का वार है। इसीलिए राहुल गाँधी अतीत नहीं, वर्तमान और भविष्य की लड़ाई लड़ते नज़र आते हैं जब वे कहते हैं कि लड़ाई मनुस्मृति और डॉ. आंबेडकर के बनाये संविधान के बीच है।

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पंकज श्रीवास्तव
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