केरल विधानसभा ने वह काम कर दिया है, जो आज तक देश की किसी विधानसभा ने नहीं किया। मेरी जानकारी में ऐसा कोई तथ्य नहीं है कि केंद्र सरकार और संसद ने स्पष्ट बहुमत से कोई क़ानून पारित किया हो और उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी हो गए हों, इसके बावजूद किसी राज्य की विधानसभा ने लगभग सर्वानुमति से उस क़ानून को लागू नहीं करने का फ़ैसला किया हो।
नागरिकता क़ानून: केरल में बग़ावत; संघीय ढांचा चरमराने का ख़तरा?
- विचार
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- 2 Jan, 2020

मान लें कि केरल की तरह अगर दर्जन भर विधानसभाएं नागरिकता संशोधन क़ानून को लागू न करने का प्रस्ताव अपने राज्यों की विधानसभा में पारित कर लें तो क्या होगा? ऐस में केंद्रीय क़ानूनों और संसद की अवहेलना सामान्य-सी बात बन सकती है और यह राष्ट्रीय एकता के लिए ख़तरनाक संकेत है।