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फाइल फोटो

370 पर बीजेपी की ज़िद के चलते पंडित हुए शहीद!

कश्मीर में इन दिनों जो टार्गेट किलिंग हो रही हैं, वह एक नया ट्रेंड है और इसके पीछे है अगस्त 2019 का वह फ़ैसला जिसके तहत अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय कर दिया गया था। उस फ़ैसले का दंड भोग रहे हैं आज कश्मीरी पंडित...
नीरेंद्र नागर

कश्मीर में इन दिनों जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर राजा और नौकर बंदर की कहानी याद आ जाती है। आपको याद होगा कि कैसे बंदर ने एक ज़िद्दी मक्खी पर, जो बार-बार उड़ाने पर भी राजा की नाक पर बैठ जाती थी, तलवार से वार कर दिया और इस चक्कर में राजा की नाक ही लहूलुहान हो गई।

केंद्र की मोदी सरकार ने भी कश्मीर के साथ वही काम किया है। उसने वहाँ आतंकवाद और अलगाववाद की ज़िद्दी मक्खी को उड़ाने के चक्कर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की तलवार चला दी और उसका नतीजा यह हो रहा है कि 'जिन लोगों के हित में’ सरकार ने यह काम किया था, उन्हीं का कश्मीर की सड़कों पर ख़ून बह रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2019 के बाद अब तक कश्मीर में 17 पंडित अपनी जान गँवा चुके हैं। यही नहीं, बीजेपी के 15-20 नेता और कार्यकर्ता भी आतंकवादियों के हमलों में मारे गए हैं।

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जब केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 पर कुल्हाड़ी चलाई थी तो उसे मालूम था कि इसका कश्मीर में भारी विरोध होगा। इसी कारण अगले कई महीनों के लिए पूरा कश्मीर एक बड़े कैदखाने में तबदील कर दिया गया, नेताओं-कार्यकर्ताओं को नज़रबंद कर दिया गया, लोगों के आपस में बात करने, मिलने-जुलने और सभाएँ करने पर रोक लगा दी गई, इंटरनेट ठप कर दिया गया। सरकार के अनुसार यह सब इसलिए किया गया था कि आम लोग आक्रोश में आकर हिंसक न हो जाएँ और पुलिस व सेना की कार्रवाई में बड़ी संख्या में मासूमों की जान न चली जाए।

पहली नज़र में देखें तो सरकार की इस कार्रवाई का असर सही रहा। लोगों का त्वरित आक्रोश उनके सीने में ही दबकर रह गया लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका आक्रोश ख़त्म हो गया था। इस दमन के चलते उग्र कश्मीरी युवाओं के मन में दबे आक्रोश ने एक भयानक रूप ले लिया जो अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय करने के तीन ही महीनों बाद अन्य प्रदेशों से आए मज़दूरों की हत्या के रूप में सामने आया।

kashmiri pandits target killing after bjp article 370 abrogation - Satya Hindi

यह एक नया ट्रेंड था जो अगस्त 2019 की घटना के बाद शुरू हुआ था। अगस्त 2019 के बाद कश्मीरियों को लगने लगा कि पूरे भारत ने उन्हें धोखा दिया है, अनुच्छेद 370 के रूप में एक उपहार जो उन्हें भारत में शामिल होने के एवज़ में 1950 में मिला था, वह उनसे बंदूक़ की नोक पर छीन लिया गया है। उन्हें यह भी लगा कि इस ज़बरदस्ती और धोखे में सारे भारतीय सरकार के साथ हैं। इसी कारण राजस्थान, झारखंड और बंगाल से आए मज़दूर उनके दुश्मन हो गए।

अगस्त 2019 से पहले अलगाववादियों और आतंकवादियों की लड़ाई भारत सरकार और उसके आदेश पर काम करने वाले सशस्त्रबलों से थी। शेष भारतीयों से उनकी लड़ाई नहीं थी।

यहाँ तक कि कश्मीरी पंडित जो स्वतंत्र कश्मीर की लड़ाई में उनके साथ कभी नहीं रहे, उनको भी निशाना बनाए जाने की घटनाएँ पिछले कई सालों से कम ही सुनने में आती थीं।

लेकिन अगस्त 2019 ने सब कुछ उलट-पुलट कर दिया। इसने कश्मीरी पंडितों समेत सारे भारतीयों को कश्मीर का शत्रु बना दिया और उनको अपना ग़ुस्सा निकालने के लिए एक आसान टार्गेट दे दिया।

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कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ने वाले युवक जानते हैं कि उनकी संख्या बहुत कम है। पाकिस्तान से थोड़ी-बहुत मदद मिल भी जाए तो भी वे भारतीय फ़ौजों का मुक़ाबला किसी भी हाल में नहीं कर सकते। इसी कारण वे अब सैनिकों और सशस्त्र बलों या उनके ठिकानों पर हमले नहीं करते जैसे पहले किया करते थे। इसके बदले वे उन सॉफ़्ट टार्गेट को निशाना बनाते हैं जो उनकी नज़र में सरकार के साथ हैं। मसलन पुलिस में काम करने वाले कश्मीरी मुसलमान जिनको वे ग़द्दार समझते हैं या वे हिंदू जो सरकारी मुलाजिम हैं और घाटी में तैनात हैं।

यह सही है कि आम नागरिकों की हत्या के 24 घटों के अंदर ही सरकारी पक्ष की तरफ़ से यह दावा किया जाता है कि हत्यारे मारे गये लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद किसी और को निशाना बना दिया जाता है। इसके दो ही मतलब निकाले जा सकते हैं। एक, कि वास्तविक हत्यारे नहीं मारे जा रहे। दो, एक आतंकवादी के मारे जाने के बाद दो नए आतंकवादी पैदा हो रहे हैं। दोनों ही स्थितियाँ आम लोगों के लिए घातक हैं।

कश्मीर में आम लोगों को निशाना बनाए जाने के बाद कश्मीरी पंडितों को भी लगने लगा है कि अनुच्छेद 370 को हटाया जाना और बीजेपी नेताओं द्वारा इसे भारी विजय बताना ख़ुद उनके लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

इसी कारण जुलाई 2020 में ही पंडितों के एक संगठन ने मांग की थी कि अनुच्छेद 370 को पुनर्जीवित किया जाए।

लेकिन अनुच्छेद 370 को नाक का सवाल बनाने वाले मोदी और शाह ऐसा कुछ करेंगे, यह सोचना भी नादानी है। हाँ, अगर सुप्रीम कोर्ट ऐसा कुछ फ़ैसला दे दे तो अलग बात है। लेकिन उसमें अभी देर है और वहाँ भी क्या होगा, कहा नहीं जा सकता।

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सो आज की तारीख़ में स्थिति यह है कि अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय किए जाने के बाद कश्मीर में शुरू हुई नई तरह की यह जंग यूँ ही चलती रहेगी। इस जंग में जिनके पास बुलेटप्रूफ़ गाड़ियाँ हैं और चौबीस घंटे की सिक्युरिटी है, वे बचे रहेंगे, जिनके पास लड़ने और आत्मरक्षा के लिए हथियार हैं, वे भी अपनी सुरक्षा कर लेंगे लेकिन जिनके पास कुछ नहीं है मगर जो आतंकवादियों की नज़र में दुश्मन के साथ हैं, वे बेचारे मारे जाएँगे चाहे वे पंडित हों, मुसलमान हों या रोज़ी-रोटी के लिए कश्मीर में आए मज़दूर।

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