हिजाब को लेकर कर्नाटक में जबर्दस्त खट-पट चल पड़ी है। यदि मुसलिम लड़कियाँ हिजाब पहनने को लेकर प्रदर्शन कर रही हैं तो हिंदू लड़के भगवा दुपट्टा लगाकर नारे जड़ रहे हैं। उन्हें देख-देखकर दलित लड़के नीले गुलूबंद डटाकर नारे लगा रहे हैं। अच्छा है कि वहाँ समाजवादी नहीं हैं। वरना वे लाल टोपियां लगाकर शोर-शराबा मचाते। समझ में नहीं आता कि शिक्षा-संस्थाओं में सांप्रदायिकता का यह जहर क्यों फैलता जा रहा है?
हिजाब विवाद: ईश्वर और अल्लाह के नाम पर झगड़े क्यों?
- विचार
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- 10 Feb, 2022

मनुष्य जाति का इतिहास बताता है कि मजहबों, पंथों या तथाकथित धर्मों ने जहां करोड़ों मनुष्यों को नैतिकता और मर्यादा का पाठ पढ़ाया है, वहीं उन्होंने राजनीति से भी ज्यादा गंदी भूमिका अदा की है। इसीलिए जरूरी है कि हम मजहब, पंथ, संप्रदाय और धर्म के नाम पर आपस में लड़ने से बाज आएं।
न हिजाब पहनना अपने आप में बुरा है, न भगवा दुपट्टा लपेटना और न ही लाल टोपी लगाना लेकिन यदि आपकी वेशभूषा, खान-पान और भाषा-बोली यदि आपस में बैर करना सिखाती है तो मेरा निवेदन है कि आप उसे तुरंत तज दीजिए।