कर्नाटक विधानसभा चुनावों की तारीख़ों का ऐलान हो गया है। कर्नाटक में मुक़ाबला बीजेपी के मोदी करिश्में और कांग्रेस के खड़गे दांव के बीच होगा। दक्षिण के इस राज्य की ज़मीन पर ही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस के लिए राजनीतिक रूप से कितनी फायदेमंद हुई इसकी परीक्षा भी होगी।
इस साल हुए पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावों के नतीजों, हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अडानी प्रकरण पर विपक्ष के सरकार और सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले, राहुल गांधी के संसद और लंदन में दिए गए भाषणों के बाद गरमाई राजनीति से संसद के बजट सत्र न चलना और सूरत की अदालत से मानहानि के मुकदमे में दो साल की सजा के बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता ख़त्म होने के बाद इस मुद्दे पर सभी विपक्षी दलों के एकजुट होने से यह साफ़ हो गया है कि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन और संयुक्त विपक्ष के बीच कड़े मुक़ाबले के संकेत हैं। अगला लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल हो या न हो लेकिन किसी न किसी रूप में राहुल गांधी सरकार विरोधी राजनीति का केंद्र बने रहेंगे।
पूर्वोत्तर में बीजेपी गठबंधन की सियासी बोहनी के साथ ही 2023 के चुनावी मेले की शुरुआत हो गई है। अब अप्रैल-मई में कर्नाटक और उसके बाद वर्षांत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और तेलंगाना के चुनावी मेले में बीजेपी के रणकौशल और कांग्रेस समेत विपक्ष की चुनौती की कठिन परीक्षा होनी है। भाजपा और उसके समर्थक दलों को भरोसा है - अपने नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर, उनकी भाषण कला पर जो अपने ऊपर होने वाले हमलों को भी अपना हथियार बना लेती है, अपने कार्यकर्ताओं की लंबी फौज पर, गृह मंत्री अमित शाह की कुशल रणनीति पर, अध्यक्ष जेपी नड्डा की कड़ी मेहनत पर, मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सभी अनुषांगिक संगठनों के विस्तृत प्रचार तंत्र पर, मोदी सरकार के कामकाज, उपलब्धियों और अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों को मिलने वाले मुफ्त राशन पर, तमाम सरकारी योजनाओं के लाभार्थी वर्ग की वफादारी पर और इन सबसे बढ़ कर हिंदुत्व के ज़रिए देश की बहुसंख्यक आबादी के ध्रुवीकरण पर।
दूसरी तरफ़ विपक्ष यानी कांग्रेस और उसके समर्थक दलों को लगता है कि महंगाई, बेरोज़ग़ारी, पुरानी पेंशन योजना, नोटबंदी/जीएसटी से छोटे उद्योगों और व्यापारियों को होने वाले आर्थिक नुक़सान, समाज के बिगड़े ताने बाने, पूर्वी सीमा पर चीन का बढ़ता अतिक्रमण, अडानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद याराना पूंजीवाद का बढ़ता ख़तरा, गैर भाजपा शासित राज्यों के साथ केंद्र सरकार के बिगड़ते रिश्ते और गैर भाजपा दलों के नेताओं के खिलाफ लगातार सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे मुद्दे मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ उसके पास बड़ा कारगर हथियार हैं।
विपक्षी नेताओं, खासकर, अब तक कांग्रेस से दूरी बनाकर चल रहे अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, चंद्रशेखर राव के साथ आ जाने से भी कांग्रेस का हौसला बढ़ा है। पार्टी इसे बीजेपी के खिलाफ भावी विपक्षी एकता के पहले क़दम के रूप में देख रही है।
बीजेपी को भी इसका अहसास है इसलिए उसने राहुल गांधी के उस बयान पर, जिसे लेकर उन्हें सजा हुई है, ओबीसी कार्ड खेलना शुरू कर दिया है। सरकार के सभी वरिष्ठ मंत्री राहुल गांधी पर हमलावर हैं। पहले उनके लंदन वाले भाषण को लेकर उन पर देशविरोधी काम करने का आरोप लगाते हुए माफी मांगने पर जोर दिया गया और अब राहुल गांधी पर ओबीसी के अपमान का आरोप लगाकर भाजपा ने अपने ओबीसी सांसदों को मैदान में उतार दिया है। भाजपा इसमें एक तरफ़ तो कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेना चाहती है तो दूसरी तरफ़ अपने इस दांव में सपा, जद(यू) राजद जैसे मंडलवादी दलों के जातीय जनगणना कार्ड की काट भी देख रही है। हालांकि भाजपा को जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने सवाल किया है कि जब 2017 में उन्होंने मुख्यमंत्री आवास खाली किया तो उसे गंगा जल से धोने वाले कैसे ओबीसी की बात कर सकते हैं।
उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने पहले संसद में विपक्ष को चुनौती देते हुए कहा कि एक अकेला सब पर भारी और अब दिल्ली में भाजपा कार्यालय पर हुए एक समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि उनकी सरकार के खिलाफ अभी और निचले स्तर के आरोप लगाए जाएंगे। मोदी ने राहुल के मुद्दे पर एकजुट हो रहे विपक्ष पर हमला करते हुए कहा कि उनके खिलाफ सारे भ्रष्टाचारी एकजुट हो रहे हैं।
कुल मिलाकर आने वाले सभी चुनावों की गोलबंदी और मुद्दे स्पष्ट हैं। कांग्रेस समेत सारा विपक्ष हिंडनबर्ग अडानी मुद्दे को लोकसभा चुनावों तक ज़िंदा रखेगा और सरकार से पूछता रहेगा कि अडानी की कंपनियों में शेल कंपनियों से आने वाली रक़म किसकी है और प्रधानमंत्री मोदी का अडानी से क्या रिश्ता है। जबकि बीजेपी विपक्ष के आरोपों को मोदी सरकार की अगुआई में भारत की विकास यात्रा के ख़िलाफ़ साज़िश बताते हुए अपनी सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों को आगे रखेगी। जवाब में विपक्ष महंगाई, बेरोज़गारी के मुद्दों पर जोर देगा।
जनवरी 2024 में राम मंदिर के निर्माण पूरा होने, काशी मथुरा के मंदिरों के विवाद और कुछ साधू-संतों द्वारा हिंदू राष्ट्र की मांग बार-बार उठाते रहने के ज़रिए हिंदुत्व का अपना हथियार भी इस्तेमाल करेगी। जिसकी काट के लिए विपक्षी खेमे के मंडलवादी दल जातीय जनगणना की मांग पर जोर देंगे। मुद्दों और आरोपों की इन्हीं धाराओं अंतर्धाराओं के घमासान के बीच इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल के लोकसभा चुनावों में लोग वोट डालेंगे।
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