बलूची स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा कराची में हालिया हमले ने मुझे यह लेख लिखने के लिए प्रेरित किया।
पाकिस्तानी अक़सर कश्मीरियों के लिए आत्मनिश्चय के अधिकार की मांग करते आये हैं। लेकिन एक प्रसिद्ध कहावत है कि 'जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।’
मेरा लेख 'The truth about Pakistan', जो पाकिस्तानी अख़बार The Nation में प्रकाशित हुआ था उसे ऑनलाइन देखें। उसमें मैंने बताया है कि पाकिस्तान एक फर्जी, कृत्रिम देश है जो फर्जी दो-राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर बनाया गया था और मैंने अक़सर कहा है कि यह भारत के साथ दोबारा जुड़ने के लिए बाध्य है।
आखिर, पाकिस्तान क्या है? 1971 में बांग्लादेश के निर्माण से मूल पाकिस्तान नष्ट हो गया था। उसके बाद पाकिस्तान में केवल पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और ख़ैबर पख्तूनख्वा ही बच गए। ये सभी मुगलकाल से भारत का हिस्सा थे।
बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है। यह वास्तव में एक स्वतंत्र राज्य था जिसे कलात ख़ानत/कलात की ख़ान के रूप में जाना जाता था। 1839 में अंग्रेजों ने इस पर आक्रमण किया। जब ख़ान के साथ संधि नहीं हुई थी, तब तक यह ब्रिटिश सैनिकों द्वारा आंशिक रूप से ही कब्ज़े में था। फिर 1876 में संधि होने के बाद इसे एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता दी गई थी।
पाक सेना ने किया कब्जा
11 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश सरकार ने बलूचिस्तान को आज़ादी दी और यह उस समय पाकिस्तान का हिस्सा नहीं था। पाकिस्तान को तीन दिन बाद 14 अगस्त को आज़ादी मिली। 27 मार्च, 1948 को पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर उसे पाकिस्तान का हिस्सा घोषित कर दिया था।
इसके बाद 1948, 1963, 1968, 1973 आदि में बलूचियों द्वारा स्वतंत्रता के लिए बार-बार संघर्ष किए गए और 2003 से ये जारी हैं। पाकिस्तानी सेना जिसमें बड़े पैमाने पर पंजाबी हैं, उन्होंने हजारों बलूचियों को मार डाला और कई लोगों के शवों को हेलिकॉप्टर द्वारा गड्ढों और पहाड़ों में फेंक दिया।
बलूचियों पर कई अत्याचार जैसे उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार आदि, एक सामान्य घटना है। बलूच स्वतंत्रता संग्राम जारी है। नवीनतम घटना हाल ही में कराची स्टॉक एक्सचेंज पर हमला है।
हाशिए पर हैं बलूची
बलूचियों की संस्कृति और भाषा अन्य पाकिस्तानियों से अलग है। बलूचिस्तान में गैस, कोयला, सोना, तांबा, सल्फर आदि के विशाल प्राकृतिक संसाधन हैं जो पाकिस्तान सरकार द्वारा चीनियों को सौंप दिए गए हैं जबकि बलूचियों को हाशिए पर और ग़रीबी में रखा गया है। इस कारण स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बलूचियों में गहरी नाराज़गी है।
जहां तक सिंध का संबंध है, सिंधी नेता जी.एम सैयद द्वारा एक स्वतंत्र 'सिंधुदेश' के लिए 'जिए-सिंध' (सिंध अमर रहे) आंदोलन चलाया गया था और यह संघर्ष अभी भी जारी है।
ख़ैबर पख्तूनख्वा के पश्तून भाषी लोगों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। ये आदिवासी लोग हैं जो अपने अफगान समकक्षों की तरह, स्वतंत्रता के प्रबल प्रेमी हैं। इनकी पाकिस्तानी सेना से दुश्मनी है जिसमें बड़े पैमाने पर पंजाबी हैं और जिन्हें कब्ज़ा करने वाले एक सैनिक बल के रूप में देखा जाता है।
इसलिए अगली बार जब पाकिस्तानी कश्मीरियों के लिए आत्मनिश्चय की बात करें तो उन्हें पहले अपने आँगन के पिछवाड़े में जलती हुई आग को देखना चाहिए। इस आग की बुझने की कोई सम्भावना नहीं है बल्कि यह टकराव एक भयंकर अग्निकांड में परिवर्तित होगा, इस बात की चेतावनी है।
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