हिंदुस्तान के राजनीतिक इतिहास की अहम तारीख़। इमरजेंसी की कहानी की पहली सुबह। पैंतालीस साल हो गए। वो दिन था - 12 जून, 1975। इलाहाबाद हाई कोर्ट का कमरा नंबर 24, सुबह दस बजे से पहले ही खचाखच भर गया था। सांसों की तेज़ आवाजाही और तेजी से आते-जाते कदमों की चहलकदमी ने माहौल को गरमा दिया था। रहस्यमयी खामोशी लिए कई चेहरे, दिल की बढ़ती धड़कनों को सीने पर हाथ रख कर दबाने की कोशिश करते कुछ बड़े लोग और अख़बारों के रिपोर्टर्स की चौकस आंखों के बीच जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की एंट्री।
जब जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी का चुनाव ख़ारिज कर दिया!
- विचार
- |
- |
- 12 Jun, 2020

राज नारायण बनाम इंदिरा गाँधी मामला हिन्दुस्तान का एक ऐसा मामला था जिसने देश की राजनीति को बदल कर रख दिया। इस मामले में फ़ैसला सुनाया था जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने। इस फ़ैसले ने हिन्दुस्तान की सबसे ताक़तवर प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को जोरदार झटका दिया था। तमाम प्रलोभनों और दबावों को दरकिनार करते हुए जस्टिस सिन्हा द्वारा सुनाए गए इस फ़ैसले की चर्चा होती रहेगी।
उधर, प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के 1, सफ़दरजंग रोड के आवास पर उनके वरिष्ठ निजी सचिव एन.के. शेषन की निगाहें दफ्तर में रखे टेलीप्रिंटर पर थीं। टेलीप्रिंटर पर शब्दों के सरकने की आवाज़ उन्हें परेशान कर रही थी। दिल्ली के सबसे ताक़तवर दफ्तर में बैठे एक आला अफ़सर को इंतज़ार था इलाहाबाद हाई कोर्ट से आने वाली ख़बर का।