लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) का आज (ग्यारह अक्टूबर) जन्मदिन है। तीन दिन पहले आठ अक्टूबर को उनकी पुण्य तिथि थी। सोचा जा सकता है कि जेपी आज अगर हमारे बीच होते तो क्या कर रहे होते? 1974 के ‘बिहार आंदोलन’ में जो अपेक्षाकृत छोटे-छुटभैया नेता थे, आज बिहार और केंद्र की सत्ताओं में बड़ी राजनीतिक हस्तियाँ हैं। कल्पना की जा सकती है कि जेपी अगर आज होते और 1974 जैसा ही कोई आह्वान करते (‘सिंहासन ख़ाली करो कि जनता आती है‘) तो कितने नेता अपने वर्तमान शासकों को छोड़कर उनके साथ संघर्ष करने का साहस जुटा पाते! जेपी आंदोलन से तब जुड़े रहे कई नेता, बुद्धिजीवी, ‘आंदोलनजीवी’ और पत्रकार-संपादक आज सत्ता के दरबार में झाड़ू-पोंछा कर रहे हैं।
इंदिरा की नज़रों में जेपी की हैसियत आम आदमी जितनी ही थी?
- विचार
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- 11 Oct, 2024

‘लोकनायक’ का आज यानी 11 अक्टूबर को जन्मदिन है। जेपी को आज किस रूप में याद किया जाए और यदि वह इस वक़्त के नेताओं को देख रहे होते तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होती?
चौबीस मार्च, 1977 को मैं उस समय दिल्ली के राजघाट पर उपस्थित था जब एक व्हील चेयर पर बैठे अस्वस्थ जेपी को गांधी समाधि पर जनता पार्टी के नव-निर्वाचित सांसदों को शपथ दिलवाने के लिए लाया गया था। मोदी सरकार में समय-समय पर शामिल रहीं और भाजपा के साथ आज भी गठबंधन की शिकार कई हस्तियाँ तब वहाँ प्रथम बार निर्वाचित सांसदों के रूप में मौजूद थीं। जेपी के पैर पर पत्ता चढ़ा हुआ था। आग्रह किया जा रहा था कि उनके पैरों को न छुआ जाए। वह दृश्य आज भी याद आता है, जब भीड़ के बीच से निकलकर उनके समीप पहुँचने के बाद मैंने उन्हें प्रणाम किया तो वे हलके से मुस्कुराए और मैं स्वयं को रोक नहीं पाया ... उनके पैरों के पास पहुँचकर हल्के से स्पर्श कर ही लिया। उन्होंने मना भी नहीं किया।