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जिन शिक्षण संस्थानों पर मीडिया और सरकार द्वारा देशद्रोह की गतिविधियों का अड्डा होने के आरोप लगाए जाते हैं उनका शिक्षा के लिए नंबर वन आना क्या संकेत देता है? क्या वाक़ई ये शिक्षण संस्थान देशद्रोह का अड्डा रहे हैं या किसी विचारधारा विशेष के कारण इन पर ये हमले किये जा रहे हैं!
जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय के बाद अब दिल्ली के एक अन्य विश्विद्यालय जामिया मिल्लिया को शिक्षा मंत्रालय की रैंकिंग सूची में पहला स्थान हासिल हुआ है। ग़ौरतलब यह है कि इस सूची में पहले चार में से तीन वे विश्विद्यालय हैं जो पिछले पाँच छह सालों से लगातार मीडिया और मोदी सरकार के मंत्रियों के निशाने पर रहे हैं। इस सूची में पहले चार में एक बार फिर जेएनयू का नाम भी आया है। इसके अलावा अलीगढ़ मुसलिम विश्विद्यालय का नाम भी शामिल है।
जेएनयू, जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की गतिविधियों को लगातार यह कहकर प्रचारित किया जाता रहा है कि यहाँ ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ जन्मता, पलता और बढ़ता है। जेएनयू में कन्हैया कुमार और उनके साथियों पर लगा देशद्रोह का मामला आज अदालत में है जबकि नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के बाद जामिया मिल्लिया और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय भी निशाने पर रहे। अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तसवीर को लेकर भी विवाद पैदा हुआ था।
मोदी सरकार के दौर में शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों को देशद्रोही कहने से लेकर उन पर हमलों तक की अनेक घटनाएँ सामने आयी हैं और इन घटनाओं को लेकर सरकार पर पक्षपात के आरोप भी लगे। शिक्षा नीति में बहुत कुछ बदलाव की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के शिक्षा मंत्रियों द्वारा बार-बार कही गयी। विश्वविद्यालयों के स्तर सुधारकर उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने, मुकेश अंबानी घराने की जियो तथा मोहनदास पई के मणिपाल विश्वविद्यालय को एक एक हज़ार करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी की गयी।
जेएनयू के बाद अब जामिया मिल्लिया इसलामिया शिक्षा मंत्रालय की रैंकिंग सूची में पहले स्थान पर आया है। जामिया को 90% स्कोर मिला है। जामिया 100 साल पुरानी यूनिवर्सिटी है और इसकी नींव रखने वालों में महात्मा गाँधी जैसी शख्सियत का नाम भी है।
इस यूनिवर्सिटी के पहले ट्रेजरर (कोषाध्यक्ष) जमना लाल बजाज रहे हैं, जिन्हें महात्मा गाँधी के दत्तक पुत्र के नाम से जाना जाता था। उस समय अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रहे आज़ादी के आंदोलन में जामिया की महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती थी। लेकिन जब नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी को लेकर विरोध हुआ और यहाँ के विद्यार्थियों ने उसमें सक्रिय हिस्सा लेना शुरू किया तो यह शिक्षण संस्थान मीडिया के निशाने पर आ गया। विश्वविद्यालय परिसर में पुलिस ने लाठियाँ भांजी, पुस्तकालय और छात्रावास तक में पुलिस के घुसने और विद्यार्थियों के साथ मारपीट करने की घटनाएँ हुईं।
यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी जब आंदोलन कर रहे थे तो बाहरी व्यक्ति द्वारा पुलिस की मौजूदगी में गोलियाँ चलाने जैसी घटनाएँ भी हुईं। मीडिया में विद्यार्थियों पर देशद्रोह जैसी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप लगे। लेकिन इन सबके बाद शिक्षा मंत्रालय की सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने संस्थान में शिक्षा के प्रदर्शन पर की गई ग्रेडिंग/स्कोरिंग में जामिया को पहले नंबर पर पाया। दूसरे नंबर पर 83% स्कोर के साथ अरुणाचल प्रदेश की राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी और तीसरे नंबर पर 82% स्कोर के साथ जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी है। इसके अलावा पिछले दिनों विवाद में रहने वाला अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय 78% स्कोर के साथ चौथे नंबर पर आया है। अब ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या जानबूझकर ऐसे विश्विद्यालयों को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है?
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