भारत दुनिया में सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले में तीसरे स्थान पर पहुँच गया और महाराष्ट्र देश में पहले स्थान पर। कोरोना के इन आँकड़ों में सरकारों और स्वास्थ्य ढाँचे की विफलता की बड़ी कहानी है, लेकिन जो सवाल उठ रहे हैं वह यह कि कोरोना से लड़ाई में हमारे देश में पिछले चार-पाँच महीनों में अलग-अलग मॉडल आये। केरल का मॉडल, राजस्थान में भीलवाड़ा मॉडल और मुंबई में धारावी मॉडल। इन मॉडल में जिसकी सबसे ज़्यादा चर्चा हुई और जिसे सराहा गया वह है धारावी मॉडल। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अच्छा बताया। इन मॉडल्स को बनाने में हमें सफलता मिल गयी लेकिन इनका इस्तेमाल देश के अन्य कोरोना प्रभावित हॉट स्पॉट या कन्टेनमेंट ज़ोन में सफलतापूर्वक क्यों नहीं हो पाया, यह बड़ा सवाल है?
सवाल यह है कि धारावी जैसी अनियोजित और घनी जनसंख्या वाली झोपड़पट्टी में जहाँ चलने-फिरने की भी पर्याप्त खुली जगह नहीं है वहाँ यदि संक्रमण को नियंत्रित ही नहीं किया जाता है, बल्कि क़रीब-क़रीब रोक दिया जाता है तो बाक़ी जगहों पर ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा? धारावी मॉडल क्यों नहीं मुंबई के अन्य हिस्सों या उसके उपनगरों में सफल हो पा रहा है, जबकि काम करने वाला वही प्रशासनिक ढाँचा और वही स्वास्थ्य सुविधाएँ हैं? महाराष्ट्र में मुंबई के बाद पुणे, ठाणे, नागपुर, कोल्हापुर जैसे शहरों से बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे हैं जो सरकार के लिए परेशानी बन गए हैं। छोटे शहरों या ज़िला मुख्यालयों की बात करें तो गत 12 दिनों में यहाँ पर कोरोना संक्रमितों का आँकड़ा तीन गुना तेज़ी से बढ़ रहा है।
सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी डाटा आप देखेंगे तो तसवीर स्पष्ट होती है कि कोरोना का प्रकोप अब छोटे और मध्यम शहरी इलाक़ों में बढ़ रहा है। शुरुआत में महाराष्ट्र में कोरोना के जितने संक्रमण के मामले थे उनके क़रीब 30 फ़ीसदी मुंबई और उसके उपनगरों से थे। ठाणे और पुणे को मिला दिया जाता था तो यह आँकड़ा क़रीब 70 फ़ीसदी हुआ करता था। लेकिन आज मुंबई का कुल संक्रमण में हिस्सा क़रीब 10 फ़ीसदी रह गया है और ज़िला मुख्यालयों व कस्बों में कोरोना का आँकड़ा बढ़ गया।
ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण बढ़ने का एक कारण यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी तंत्र उतनी चाक चौबंद नहीं दिखाई पड़ता है। साथ ही लॉकडाउन में छूट के बाद बड़ी संख्या में मुंबई में रहने वाले परिवारों का गाँव में आना जाना बढ़ा है।
ख़ासतौर पर महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर का हाल देखें तो जुलाई के आख़िर में नागपुर में 7% से भी कम लोग कोरोना संक्रमित हो रहे थे, लेकिन पिछले 12 दिनों की बात करें तो पॉजिटिव रेट बढ़कर 21% हो गया है यानी तीन गुना ज़्यादा। नागपुर महानगर पालिका की तरफ़ से जारी डाटा के मुताबिक़, 11 मार्च से 31 जुलाई तक नागपुर ज़िले में 79,600 लोगों के टेस्ट हुए, जिनमें से 5,392 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए। पिछले 12 दिनों में हुए कुल 33,400 टेस्ट में से 7,094 लोगों का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया है।
पॉजिटिव रेट ने प्रशासन की परेशानी भी बढ़ा दी है। नागपुर में मृत्यु दर भी देश के औसत से ज़्यादा है। नागपुर में पिछले 15 दिनों में 301 लोगों की मौत हो गई। अब तक इस शहर में कोरोना वायरस 400 लोगों की जान ले चुका है। पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले में कोविड-19 मरीज़ों की संख्या बढ़ी है। कोल्हापुर में रोज़ाना क़रीब 300 मामले सामने आ रहे हैं। 12 अगस्त को ही केवल शहर में 396 मामले रिपोर्ट किए गए। इसी के साथ, ज़िले में कोरोना के कंफ़र्म केसों की संख्या बढ़कर 11,176 हो गई है।
मराठवाड़ा के बीड परभानी ज़िले में भी कोरोना के आँकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। हालत यह है कि ज़िला प्रशासन ने शहर में 10 दिनों के लिए लॉकडाउन का एलान किया है। लेकिन अब कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा बेहाल शहर मुंबई से राहत भरी ख़बर आ रही है। शहर का रिकवरी रेट 79% पर पहुँच गया है, और साथ ही कोरोना से ठीक होने वाले लोगों की संख्या भी 1 लाख पार कर गई है।
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