loader

संसदीय संकट से गुजर रहा है भारत?

सत्ता की सुगंध इतनी तीक्ष्ण होती है कि उसके जाने के भय मात्र से ही जीवन में तारतम्य खो जाता है। धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनकर यही लगता है। वह यह भूल चुके हैं कि उन्होंने सरकार बनाई है, वो स्वयं सत्ता हैं, उनके पास समस्याओं को सुलझाने के संसाधन उपलब्ध हैं, शक्ति है, इसके बावजूद उनका व्यवहार एक सम्पूर्ण असफल नेता की भाँति लग रहा है। विपक्ष का काम है संसद में जन सरोकार के सवाल उठाना, और ऐसे उठाना कि सरकार में ऐंठन उत्पन्न हो जाये, लेकिन सरकार का काम इससे बेचैन होकर विपक्ष पर व्यक्तिगत हमला करना नहीं है बल्कि उन सवालों का जवाब देना है जिन्हें विपक्ष ने उठाया है।

राहुल गांधी ने धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में अपने भाषण के दौरान अग्निवीर योजना और उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला था। उनका कहना था कि एक युवा जिसे 31 सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद ही सीमा पर भेज दिया जाता है उसकी तुलना उस सैनिक से कैसे की जा सकती है जिसे वर्षों ट्रेनिंग देकर व्यवस्थित तरीक़े से सैनिक बनाया गया है। वर्षों की ट्रेनिंग सैनिक को न सिर्फ़ दक्षता से लड़ने और देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने में सक्षम बनाती है बल्कि उसे अपनी जान भी बचाने का अवसर प्रदान करती है। राहुल गांधी ने जब इस योजना को ख़त्म करने की बात की, इससे संबंधित समस्याओं को उजागर किया तो रक्षामंत्री और गृहमंत्री दोनों उठ खड़े हुए और अध्यक्ष से राहुल के ख़िलाफ़ कार्यवाही की माँग करने लगे। राहुल लगातार सदन में यह कहते रहे कि इस मामले की सच्चाई सेना जानती है और अग्निवीर और उनके परिवार वाले जानते हैं। अग्निवीर योजना से युवा और उनके घरवाले कितना खुश हैं इसकी जानकारी के लिए हाल ही में शहीद हुए एक अग्निवीर की राय जान लेना चाहिए। सरकार अग्निवीर को तो शहीद का भी दर्जा नहीं देती है। फिर भी मैं देश के लिए जान गँवाने वाले अग्निवीरों के लिए शहीद का ही इस्तेमाल करूँगा। मेरे लिए शहीद का मतलब ही है कि उसने देश को आगे रखकर, सबके लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया। शहीद अजय सिंह के परिवार वालों ने एक करोड़ की सहायता मिलने की पुष्टि की है। 18 जनवरी को नौशेरा सेक्टर में बारूदी सुरंग विस्फोट में मारे गए अग्निवीर अजय सिंह के परिवार ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी, उन्होंने केंद्र सरकार के रवैये से निराशा व्यक्त की और वो चाहते हैं कि इस योजना को खत्म कर दिया जाए। रक्षामंत्री ने तो खुलकर कहा कि वो इस योजना को वापस नहीं लेंगे। लेकिन राहुल गांधी जो, अग्निवीर योजना को सेना की नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय की योजना मानते हैं, उन्होंने कहा कि उनकी सरकार आते ही/बनते ही वो फ़ौरन इस योजना को ख़त्म कर देंगे। 

ताज़ा ख़बरें

सवाल राहुल गांधी का नहीं है, वो विपक्ष के नेता होने के नाते पुरज़ोर तरीक़े से जनता के मुद्दे उठा रहे हैं और इसके लिए कभी लोकसभा अध्यक्ष तो कभी संपूर्ण सत्ता प्रतिष्ठान से अपमान भी झेल रहे हैं। मुद्दा है भारत के प्रधानमंत्री का, जिन्हें तीसरी बार इस पद पर बैठाया गया है। यद्यपि इस बार जनता ने उन्हें लोकतंत्र का अच्छा सबक़ देने की कोशिश की है लेकिन प्रधानमंत्री हैं कि लेने को तैयार ही नहीं। जो राहुल गांधी संसद में खड़े होकर लाखों नीट पीड़ितों का मुद्दा उठा रहे हैं, लाखों अग्निवीर योजना से पीड़ित युवाओं का मुद्दा उठा रहे हैं, देश में हिंदू-मुस्लिम के नाम पर बढ़ रही खाई और अपने उफान पर चल रही धार्मिक हिंसा की बात कर रहे हैं, जलते हुए मणिपुर की पीड़ा को ला रहे हैं उन्हें टारगेट करते हुए भारत के प्रधानमंत्री, ‘बालक बुद्धि’ कहकर अपमानित कर रहे हैं। असल में पीएम मोदी सिर्फ़ राहुल को ही नहीं भारत की दो लोकसभाओं के मतदाताओं का भी मखौल उड़ा रहे हैं, वो एक ऐसे नेता का मखौल उड़ा रहे हैं जो उत्तर और दक्षिण भारत दोनों जगह समान रूप से सम्मान प्राप्त है और लोकतांत्रिक रूप से स्वीकार्य है। संभवतया लोग मखौल तब उड़ाते हैं जब उनके पास जवाब नहीं होता। राहुल गांधी के भाषण का उसमें उठाये गये सवालों का न ही मोदी जी के पास कोई जवाब है, न ही उनकी पूरी पार्टी के पास। 

हो सकता है किसी ने गौर ना किया हो लेकिन राहुल गांधी के लोकसभा में भाषण के दौरान एक बड़ी ही दिलचस्प घटना घटी। जब राहुल ने अग्निवीर के शहीद को मुआवजा ना मिलने की बात की तो सत्ता के सभी मंत्री शोर मचाने लगे, पूरा सदन सर पर उठा लिया। लेकिन वहीं जब राहुल ने मणिपुर का मुद्दा उठाया, वहाँ की त्रासदी की बात की, प्रधानमंत्री के रवैये की बात तब उन पर कोई शोर नहीं बरसाया गया, एक भी बार नहीं कहा गया कि उनके तथ्य ग़लत हैं और वो सदन को गुमराह कर रहे हैं। इसका तात्पर्य है कि सरकार यह स्वीकार करती है कि मणिपुर, जो महीने से जल रहा है, उसके लिए पीएम मोदी और उनकी सरकार ज़िम्मेदार है। एक तरफ मानसून है जो 6 दिन पहले आ गया है जबकि पीएम मणिपुर की सुध लेने में महीनों की देरी से हैं।  

जरा सोचकर देखिए पीएम मोदी ने स्वयं संसद में स्वीकार किया है कि मणिपुर में 11 हज़ार से ज़्यादा FIR हुई हैं। एक छोटे से प्रदेश में इतनी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं, यह समझना कठिन नहीं है कि मणिपुर में युद्ध जैसी स्थिति है। इसके बावजूद पीएम मोदी एक भी बार मणिपुर जाने का साहस नहीं जुटा सके। कैसे प्रधानमंत्री हैं ये? अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मणिपुर का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। जिसमें एक कुकी-जो समुदाय के एक व्यक्ति का इलाज करने से ही मना कर दिया था। इस पर न्यायालय ने सख़्त रवैया अपनाते हुए जाँच के आदेश दिये हैं और कहा है कि कठोर कार्यवाही के लिए तैयार रहें। भारत में भारतीयों के साथ भारतीय ही घटिया व्यवहार कर रहे हैं, इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? 
मणिपुर के लिए पीएम मोदी के पास कहने को कुछ नहीं है। मणिपुर में हिंसा शुरू हुए डेढ़ साल होने को हैं और भारत के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि हिंसा कम हो रही है। सवाल यह है कि हिंसा को महीने भर में ही क़ाबू में क्यों नहीं कर लिया गया?

सवाल यह है कि पीएम ने स्वयं जाकर स्थिति का जायज़ा लेने की हिम्मत क्यों नहीं की? सवाल यह है कि डेढ़ साल से हो रही लगातार हिंसा के ज़िम्मेदार लोगों को कुर्सी से क्यों नहीं उतारा गया? जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिल जाता तब तक पीएम मोदी को मणिपुर पर अन्य दलों को ज्ञान देने से बचना चाहिए। जिस विपक्ष के नेता राहुल गांधी को पीएम मोदी सदन में खड़े होकर ‘बालक बुद्धि’ कह रहे थे, ये वही बालक बुद्धि है जिसने ख़तरे और राजनीति से ऊपर उठकर मणिपुर के लोगों से मुलाक़ात करना, उनका दर्द साझा करना ज़्यादा ज़रूरी समझा। राहुल के लिए कोई एक समुदाय वोट बैंक नहीं था, उन्होंने मणिपुर के उन दोनों समुदायों से मुलाक़ात की जिनके बीच संघर्ष चल रहा है। लेकिन सुलझाने का काम, आश्वासन देने का काम तो पीएम का था, उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाई।

राहुल गांधी ने नीट का मामला उठाया तब भी सरकार को काफ़ी तकलीफ़ हुई। लेकिन जब पीएम मोदी से जवाब मिलने की बारी आयी तो बस उन्होंने इतना ही कहा कि पेपरलीक के ज़िम्मेदार लोगों को बख्शेंगे नहीं। उनकी बातों पर कैसे भरोसा किया जाए? 

विचार से और
वो एक ऐसे नेता हैं जो भविष्य में अपनी और अपनी सरकार की कमियों पर पर्दा डालने के लिए जाने जाएँगे। एक बार भी उन्होंने नीट पेपरलीक में अपनी सरकार की कमी को नहीं स्वीकारा, न ही यह कहा कि नीट का पेपर फिर से आयोजित किया जाएगा। न ही NTA के ख़िलाफ़ कोई कठोर कदम उठाया। हर बार छात्र ही सरकारी अक्षमता का ख़ामियाज़ा क्यों भुगतें? पीएम मोदी और उनकी सरकार छात्र/परीक्षा/शिक्षा और प्रतियोगिता को लेकर सबसे उदासीन और असंवेदनशील सरकार है। गुजरात की एक कंपनी का उदाहरण ले लीजिए। ‘एड्यूटेस्ट’ नाम की एक प्राइवेट कंपनी है जो परीक्षाएँ आयोजित करवाती है। इसकी गतिविधियों की वजह से यूपी सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है। लेकिन यही गुजराती कंपनी CSIR की परीक्षाएं आयोजित करवा रही है। क्यों ऐसा हो रहा है मुझे नहीं पता लेकिन यह ज़रूर जानना चाहिए कि CSIR का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है अर्थात् इस समय इसके अध्यक्ष नरेंद्र मोदी हैं।  
एक तरफ़ सरकार लोगों को सुनना नहीं चाहती तो दूसरी तरफ़ जो लोग सदन में मुद्दे उठाते हैं उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश की जाती है। राहुल गाँधी के लोकसभा में भाषण पर 14 जगह कैंची चलाई गई है।

राहुल गांधी ने भाजपा और पीएम मोदी को टारगेट करते हुए कहा था कि ‘नरेंद्र मोदी पूरा हिंदू समाज नहीं है, भाजपा पूरा हिंदू समाज नहीं है, आरएसएस पूरा हिंदू समाज नहीं है’। उनकी इस बात को लोकसभा की कार्यवाही से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा हटा दिया गया। इतना ही नहीं, राहुल गाँधी  के भाषण को लगभग इसके अतिरिक्त उन जगहों पर भी काटा गया जहां राहुल अंबानी-अडानी का जिक्र करते हैं, जहां राहुल नीट का जिक्र करते हैं, इसके अलावा उन स्थानों पर भी कैंची चलाई गई है जहां राहुल ने मणिपुर और अग्निवीर योजना की बात की थी। क्या इसमें कोई ऐसी बात है जिससे बीजेपी को,  मोदी जी को परेशानी होनी चाहिए थी? इन बातों को सदन की कार्यवाही से हटाकर क्या मोदी जी यह साबित करना चाहते हैं कि सिर्फ़ वही हिंदू हैं, वही पूरा हिंदू समाज है? या उन्हें लगता है कि अंबानी-अडानी इतने पवित्र हैं कि उनकी आलोचना नहीं की जा सकती है या फिर मणिपुर, नीट और अग्निवीर को लेकर सवाल पूछना संसदीय अपराध की श्रेणी में आता है? 

indian parliamentary system crisis as govt dodges opposition issues questions - Satya Hindi

राहुल गाँधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं, जोकि एक वैधानिक पद है, जो कि वरीयता क्रम में 7वें स्थान पर आता है। इसका अर्थ है कि राहुल गाँधी का कद- भारत के केन्द्रीय मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री- के समकक्ष है। ओम बिरला एक संवैधानिक पद पर विराजमान हैं (अनुच्छेद-93), उनका पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन उन्हें याद करना चाहिए जब बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने सांसद दानिश अली को भद्दी भद्दी गालियां देना शुरू कर दिया था। मुझे जानना है कि क्या ओम बिरला ने बिधूड़ी को संसद से बर्खास्त किया? उन्हें खुद झाँककर देखना चाहिए कि उनके अंदर कितनी निष्पक्षता बाकी है, एक गुण जो लोकसभा अध्यक्ष पद का आधार है। 

भारत इस समय एक संसदीय संकट से गुजर रहा है जहां विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का सत्ता पक्ष का नेता मखौल बना देता है, जहां सत्ता पक्ष का नेता वर्तमान के ज़रूरी सवालों का जवाब देने के बजाय 50 साल पुराने इतिहास पर विचरण करने चला जाता है, जहां नेता प्रतिपक्ष के विचारों को ‘असंसदीय’ कहकर काट दिया जाता है, जहां जनसरोकार पर बात करना ‘बालक बुद्धि बन जाता है और जहां देश की सबसे पुरानी पार्टी काँग्रेस को भारत का प्रधानमंत्री ‘परजीवी’ कहकर संबोधित करता है और सदन का बड़ा हिस्सा अपनी मेज थपथपाने लगता है और इस शोर में सदन के अध्यक्ष की उपस्थिति में भारत की सभी आवाजों को दबा दिया जाता है। मेरी नजर में यह असभ्य, अशोभनीय और अश्लील है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
कुणाल पाठक
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें