सुरक्षा परिषद में भारत आठ साल बाद फिर पहुँचा है। वह आठवीं बार सुरक्षा परिषद का सदस्य चुन लिया गया है। यह पहले भी सात बार उसका सदस्य रह चुका है। यह सदस्यता दो साल की होती है। सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य हैं। उनमें से पाँच- अमेरिका, रुस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस— स्थायी सदस्य हैं। इनमें से प्रत्येक को वीटो का अधिकार है। शेष दस अस्थायी सदस्य किसी भी प्रस्ताव पर अपने निषेधाधिकार (वीटो) का इस्तेमाल नहीं कर सकते। लेकिन सुरक्षा परिषद की इस अस्थाई सदस्यता का भी काफ़ी महत्व है, क्योंकि ये 10 अस्थायी सदस्य अपने-अपने महाद्वीपों- अफ्रीका, एशिया, लातीनी अमेरिका, यूरोप आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारत को 192 वोटों में से 184 वोटों का प्रचंड बहुमत मिला है। जनवरी 2021 से भारत सुरक्षा परिषद का औपचारिक सदस्य बन जाएगा।
इस बार सुरक्षा परिषद में भारत का पहुँचना विशेष महत्वपूर्ण है। चीन और पाकिस्तान दोनों ने उसका समर्थन किया है। इन दोनों पड़ोसी देशों से आजकल जैसे संबंध चल रहे हैं, उन्हें देखते हुए यह भारत की विशेष उपलब्धि है। भारत को अपने राष्ट्रहितों की रक्षा तो करनी ही है लेकिन एशिया और प्रशांत क्षेत्र के प्रतिनिधि होने के नाते इस इलाक़े के सभी देशों का भी हित संवर्धन करना है। सबसे पहले, इस अपनी आठवीं बारी में उसकी कोशिश होनी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र के मूल ढाँचे में ही परिवर्तन हो।
भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका जैसे राष्ट्रों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिले। यदि सुरक्षा परिषद के ढाँचे में यह मूल परिवर्तन हो गया तो यह विश्व राजनीति को नई दिशा दे देगा। सुरक्षा परिषद में भारत को चाहिए कि अपने इस नए पद का इस्तेमाल वह कम से कम दक्षिण एशिया महासंघ बनाने के लिए करे, जैसा कि यूरोपीय संघ है। उससे भी बेहतर महासंघ हमारा बन सकता है, क्योंकि दक्षिण और मध्य एशिया के राष्ट्र सैकड़ों वर्षों से एक विशाल कुटुम्ब की तरह रहते रहे हैं।
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