दुनिया के सबसे बड़े साझा बाज़ार (रिसेप) की घोषणा वियतनाम में हो गई है। इसमें 15 देश शामिल होंगे और अगले दो वर्ष में यह चालू हो जाएगा। साझा बाज़ार का अर्थ यह हुआ कि इन सारे देशों का माल-ताल एक-दूसरे के यहाँ मुक्त रूप से बेचा और खरीदा जा सकेगा। उस पर तटकर या अन्य रोक-टोक नहीं लगेगी। ऐसी व्यवस्था यूरोपीय संघ में है लेकिन ऐसा एशिया में पहली बार हो रहा है। इस बाज़ार में दुनिया का 30 प्रतिशत व्यापार होगा। इस संगठन में चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और द. कोरिया के अलावा एसियान संगठन के 10 राष्ट्र शामिल होंगे।
#ASEAN2020VN #CohesiveAndResponsive
— Viet Nam Government Portal (@VNGovtPortal) November 15, 2020
This morning, economic ministers from 10 @ASEAN member States and Australia, China, Japan, Republic of Korea, and New Zealand signed Regional Comprehensive Economic Partnership #RCEP after 8 years of negotiationshttps://t.co/BRfzchZ03G pic.twitter.com/zdlD8Mf2rd
2008 में इसका विचार सामने आया था। इसे पकने में 12 साल लग गए लेकिन अफसोस की बात है कि 2017 में ट्रंप के अमेरिका ने इस संगठन का बहिष्कार कर दिया और भारत इसका सहयोगी होते हुए भी इससे बाहर रहना चाहता है। भारत ने पिछले साल ही इससे बाहर रहने की घोषणा कर दी थी। इसके दो कारण थे। एक तो यह कि भारत को डर था कि उसका बाज़ार इतना बड़ा है कि उस पर कब्जा करने के लिए चीन किसी भी हद तक जा सकता है। उसका अमेरिकी बाज़ार आजकल सांसत में है। इसीलिए वह अपने सस्ते माल से भारतीय बाज़ारों को पाट डालेगा। इससे भारत के व्यापार-धंधे ठप्प हो जाएँगे।
दूसरा यह कि ‘एसियान’ के ज़्यादातर देशों के साथ भारत का मुक्त-व्यापार समझौता है और उसके कारण भारत का निर्यात कम है और आयात बहुत ज़्यादा है। पिछले साल एसियान देशों के साथ भारत का निर्यात 37.47 बिलियन डाॅलर का था जबकि आयात 59.32 बिलियन डाॅलर का रहा। चीन के साथ भी घोर व्यापारिक असंतुलन पहले से ही बना हुआ है।
अब यदि यह साझा बाजार लागू हो गया तो मानकर चलिए कि कुछ ही वर्षों में यह चीनी बाज़ार बन जाएगा। इसीलिए भारत का संकोच स्वाभाविक और सामयिक है।
लेकिन भारत के बिना यह साझा बाज़ार अधूरा ही रहेगा। इसीलिए इस संगठन ने घोषणा की है कि उसके द्वार भारत के लिए सदा खुले रहेंगे। वह जब चाहे, अंदर आ जाए।
मेरी राय है कि देर-सबेर भारत को इस ‘क्षेत्रीय विशाल आर्थिक भागीदारी’ (रिसेप) संगठन में ज़रूर शामिल होना चाहिए लेकिन अपनी शर्तों पर। वह चाहे तो चीन की चौधराहट को चुनौती दे सकता है। भारत को चाहिए कि वह दक्षिण एशिया के देशों में इसी तरह का एक संगठन (साझा बाज़ार) ‘रिसेप’ के पहले ही खड़ा कर दे लेकिन कैसे करे? उसके नेताओं में इतनी दूरगामी समझ नहीं है और उनका अहंकार छोटे-मोटे पड़ौसी देशों के साथ भाईचारे के संबंध बनाने नहीं देता। यदि दक्षेस (सार्क) देशों का साझा बाज़ार हम खड़ा कर सकें तो न सिर्फ़ 10 करोड़ लोगों को तुरंत रोज़गार मिल सकता है बल्कि यह इलाक़ा दुनिया के सबसे समृद्ध क्षेत्रों के रूप में विकसित हो सकता है।
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग से साभार।लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
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