किसी भी बाहरी चुनौती के समय अपने घर को एकजुट रखना घर के ज़िम्मेदार लोगों की प्राथमिकता होती है, लेकिन तवांग में चीनी घुसपैठ से पैदा हुए आक्रोश को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर मोड़ते हुए देश के घर (गृह) मंत्री अमित शाह ने जिस तरह के सवाल उठाये वह इस पारंपरिक विवेक को उलटने जैसा है।
सुरक्षा परिषद की सदस्यता: नेहरू पर कब तक गलत आरोप लगायेगी बीजेपी?
- विचार
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- 15 Dec, 2022

सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता के मामले में ख़ुद जवाहर लाल नेहरू ने स्थिति स्पष्ट की थी। 27 सितंबर 1955 को डा.जे.एन.पारेख के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत को कोई औपचारिक या अनौपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला था।
अफ़सोस कि इसके लिए उन्होंने गलत तथ्यों का सहारा लिया जो गृहमंत्री जैसे पद की गरिमा को धूमिल करता है। अमित शाह का यह कहना कि नेहरू के ‘चीन प्रेम के कारण सुरक्षा परिषद में भरत की स्थायी सदस्यता की बलि चढ़ गयी’, न सिर्फ़ तथ्यात्मक रूप से गलत है बल्कि भारत को एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य बनाने को अथक परिश्रम करते हुए बेमिसाल कुर्बानी देने वाले पं.नेहरू की निष्ठा पर भी सवाल उठाना है।
13 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों में विपक्ष तवांग के घटनाक्रम पर बहस चाहता था, लेकिन चार दिन बाद देश को सूचित करने खड़े हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह बस बयान देकर चलते बने। उन्होंने विपक्ष के सामान्य सवालों का जवाब देने की भी ज़रूरत नहीं समझी, बहस कराना तो दूर की बात।