गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर स्वतंत्र भारत की कल्पना करते अपनी मशहूर कविता (Where the mind is without fear and the head is held high) में लिखते हैं कि “जहाँ चित्त भय से शून्य हो/ जहाँ गर्व से माथा ऊँचा करके चल सकें/ जहाँ ज्ञान मुक्त हो/ जहाँ दिन रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर छोटे-छोटे आँगन न बनाये जाते हों/….. हे पिता, अपने हाथों से निर्दयता पूर्ण प्रहारकर/ उसी स्वतंत्र स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ...!”