सभी देशवासियों के लिए यह खुशख़बर है कि अब इंडिया गेट पर सुभाषचंद्र बोस की भव्य प्रतिमा सुसज्जित की जाएगी। इसे मैं हमारे नेताओं की भूल-सुधार कहूँगा, क्योंकि उस स्थान से जॉर्ज पंचम की प्रतिमा को हटे 52 साल हो गए लेकिन किसी सरकार के दिमाग़ में यह बात नहीं आई कि वहाँ चंद्रशेखर आज़ाद या भगतसिंह या सुभाष बाबू की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया जाए।
अब सुभाष बाबू की प्रतिमा तो वहां लगेगी ही, सरकार ने एक काम और कर दिया है, जिसकी फिजूल ही आलोचना हो रही है। वह है, अमर जवान ज्योति और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को मिलाकर एक कर दिया गया है।
यह ज्योति बांग्लादेश में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में 1972 में स्थापित हुई थी और उसके पहले और बाद के युद्धों में शहीद हुए जवानों के लिए पास में ही 2019 में एक स्मारक बना दिया गया था। अब सरकार ने इन दोनों को मिलाकर जो एक पूर्ण स्मारक बनाया है तो उसकी आलोचना यह कहकर हो रही है कि इंदिरा गांधी के बनाए हुए स्मारक को नष्ट करके मोदी अपना नाम चमकवाना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने अपने बनवाए हुए स्मारक में उसे विलीन करवा दिया है।
21 जनवरी को भारतीय टेलिविजन चैनलों पर इसी मुद्दे को लेकर दिन भर उठापटक चलती रही। जो आरोप लगाया जा रहा है, वह तभी सही होता जबकि अमर जवान ज्योति को जाॅर्ज पंचम की मूर्ति की तरह हटा या बुझा दिया जाता। अब ज्योति और स्मारक को मिला देने से संयुक्त ज्योति और भी तेजस्वी हो जाएगी।
इस महाज्योति में अब उन 3843 जवानों के नाम भी शिलालेख पर लिखे जाएंगे, जिनका बांग्लादेश में बलिदान हुआ था। पहले ये नाम नहीं लिखे गए थे।
अब संयुक्त स्मारक में कुल 24,466 जवानों के नाम अंकित होंगे, जो 1947 से अब तक के सभी युद्धों या मुठभेड़ों या आतंकी मुक़ाबलों में शहीद हुए हैं। ये नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित होंगे।
इंडिया गेट का निर्माण अंग्रेज शासकों ने 1931 में करवाया था ताकि प्रथम महायुद्ध और अफगान-ब्रिटिश युद्धों में शहीद हुए भारतीय नौजवानों को याद रखा जा सके। उनकी संख्या 84000 मानी जाती है। अब यदि अपने सभी भारतीय जवानों का स्मारक एक ही जगह हो तो यह ज्यादा अच्छा है। सभी के लिए एक ही भव्य श्रद्धांजलि समारोह होगा।
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