यही आज का नया -नार्मल है
अस्सी के दशक तक यह सामान्य बात व्यवहार नहीं था। यह तब की बात है- जब गुलशन कुमार के भक्ति सिरीज के कैसेट बाज़ार में नहीं आये थे, तब तक लोग बड़े मज़े में धर्म को अपने पूजा मंदिर में रखा करते थे, बेसुरी आवाज़ में खुद भजन गाया करते थे और घंटी टुनटुनाया करते थे। और बच्चों को ठीक से ना पढ़ने पर खूब पीटा करते थे। फ़िरोज़ ख़ान की पिटाई भी वैसी ही होती थी जैसे दीपक अग्रवाल की।टेलीविज़न के आने से न सिर्फ़ मनोरंजन के स्थल बदल गये, बल्कि बहुसंख्यवाद को इक नया तेवर मिल गया। शुरुआत मज़े- मज़े में हुई। रामायण, महाभारत सीरियल्स के प्रसारण के वक़्त अपने हिन्दू दोस्तों की तरह फ़िरोज़ खान भी टीवी पर तब तक आँख गड़ाये रखता था जब तक सीरियल ख़त्म नहीं हो जाता था।
उसे नहीं पता चलता था कि सीरियल लिखने वाले का नाम डॉ.राही मासूम रज़ा है। उसे यह भी नहीं पता था कि उसके आस-पास के लोग अब धर्म को नए सिरे से पहचानने लगे हैं। और उनमें से कुछ लोगों को कहीं न कहीं अपने सनातन धर्म की चिंता सताने लगी है।
शाकाहार
उसी दौर में शाकाहारी होना श्रेष्ठ व्यक्ति की पहचान के रूप में पनपने लगा था। ईद –बकरीद पर लोग शाकाहारी मेहमानों का स्वागत कदाचित शर्मिंदगी से करने लगे थे– ये दही बड़े और छोले आपके लिए अलग से बने हैं, प्याज़ भी अलग रखा है। कुछ ऐसे लोग भी थे जो अपने मुसलमान दोस्तों के घर छक कर सामिष खाना खाते और घर आकर पक्के निरामिष हो जाते थे। फिर बहुत भक्ति भाव से नहा धोकर पूजा पर भी बैठ जाते। उसी दौर में ईद की ईदी की तरह दशहरे पर ईनाम मिला करता था।बहुत सारी अगड़ी और पिछड़ी जातियों में पूजा और उत्सव मनाने पर बलि की परंपरा थी , इसलिये बकरीद का गोश्त कभी हिन्दू धर्म के लिये खतरा नहीं लगता था।
ज़माना सोशल मीडिया का
उस दौर के 20-25 साल बाद सभी बिछड़े लोगों ने सोशल मीडिया के ज़रिये एक दूसरे को एक करिश्मे की तरह ढूंढ लिया और अनेक वाट्सअप समूह बना लिये। शुरुआत में लोगों ने एक दूसरे से खूब प्यार मोहब्बत जताया और अपनी सांस्कृतिक सामूहिकता को याद किया, लेकिन अनेक मुद्दों पर बहस के बाद हाल ही में प्याज पर बात आ गयी। कुछ लोगों ने याद किया कैसे प्याज का बड़ा वजूद है, कैसे नासिक के प्याज उगाने वाले किसानों की माली हालत बिगड़ती जा रही है, ट्रक के ट्रक प्याज बर्बाद हो रहे हैं, लोग प्याज कैसे खरीदें, प्याज नहीं मिला था तो कैसे एक सरकार गिर गयी थी आदि-आदि।प्याज के दाम
साल के अंत तक आते आते प्याज के दाम मार्च के महीने से 400%प्रतिशत अधिक हो गए हैं,तमिलनाडु के एक इलाक़े में 180 रूपए तक दाम चले गये। लगभग 26% पैदावार में गिरावट आई है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में फ़सल को बहुत नुकसान पहुंचा, इसीलिए प्याज की किल्लत हो गयी है। सदन तक बात पहुँच गयी। जब मसला बहुत गहरा गया तो वित्त मंत्री ने चिढ़ कर कहा कि उन्हें प्याज़ की परवाह नहीं है क्योंकि वे प्याज़ नहीं खाती हैं। उनकी यह उक्ति सोशल मीडिया में बहुत वायरल हुई।इस पर भी गहन चर्चा चलने लगी तो फ़िरोज़ ख़ान ने भी मासूमियत से कह डाला –दोस्तों प्याज तो पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान से आता है। सरकार को आयात ही तो करना है, दिक्क़त क्या है?
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