प्याज है तो सिर्फ़ सब्जी, पर जब इसे शुद्ध सनातनी विचारों से जोड़ा जाता है तो यह मामूली सब्जी नहीं रहता, यह हिन्दुत्व का प्रतीक बन जाता है। इसकी कीमत गौण हो जाती है और बचा रहता है इसका हिन्दू होना।
रुढ़िवादी, कट्टर धार्मिक सोच के पिछड़े लोगों ने फ़िरोज़ ख़ान को संस्कृत पढ़ाने के योग्य क्यों नहीं माना? क्या भाषा किसी धर्म और जाति में बँधी हुई है? ऐसे में क्या कोई भाषा ज़िंदा रह पाएगी?