भारत के कुछ हिंदू और मुसलिम नेता दोनों संप्रदायों की राजनीति जमकर कर रहे हैं लेकिन देश के ज़्यादातर हिंदू और मुसलमानों का रवैया क्या है? अद्भुत है। उसकी मिसाल दुनिया में कहीं और मिलना मुश्किल है।
कुछ नेता धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं तो क्या, हिंदू बना रहे हैं मसजिद
- विचार
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- 24 Feb, 2020

क्या हम 21वीं सदी में ऐसे ही भारत का उदय होते हुए नहीं देखना चाहते हैं? मैं तो चाहता हूँ कि यही संस्कृति पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और मालदीव में भी पनपे। पूजा-पद्धतियों और पूजा-गृहों में जो यह फर्क है, यह देश और काल की विविधता के कारण है। यह फर्क मनुष्यकृत है, ईश्वरकृत नहीं। इस सत्य को यदि दुनिया के सारे ईश्वरभक्तों ने समझ लिया होता तो यह दुनिया अब तक स्वर्ग बन जाती।
कुछ दिन पहले मैंने तीन लेख लिखे थे। एक में बताया गया था कि वाराणसी में संस्कृत के मुसलमान प्रोफ़ेसर के पिता गायक हैं और वे हिंदू मंदिरों में जाकर अपने भजनों से लोगों को विभोर कर देते हैं। दूसरे लेख में मैंने बताया था कि उत्तर प्रदेश के एक गाँव में एक मुसलिम परिवार के बेटे ने अपने पिता के एक हिंदू दोस्त की अपने घर में रखकर ख़ूब सेवा की और उनके निधन पर उनके पुत्र की तरह उनके अंतिम संस्कार की सारी हिंदू रस्में अदा कीं। तीसरे लेख में आपने पढ़ा होगा कि कर्नाटक के एक लिंगायत मठ में एक मुसलिम मठाधीश को नियुक्त किया गया है लेकिन अब सुनिए नई कहानी।