कर्नाटक उच्च न्यायालय ने स्कूल-कालेजों में हिजाब पर प्रतिबंध को सही ठहरा दिया है। मेरी राय में हिजाब पहनना और हिजाब पर प्रतिबंध, दोनों ही गैर-जरुरी हैं। हमें उससे आगे सोचना चाहिए। मुसलमान औरतें हिजाब पहनें, हिंदू चोटी-जनेऊ रखें, सिख पगड़ी-दाढ़ी-मूंछ रखें और ईसाई अपने गले में क्राॅस लटकाएं- ये निशानियां धर्म का अनिवार्य अंग कैसे हो सकती हैं?
हिंदू पर्दा और मुसलिम हिजाब: औरतों के अधिकारों का हनन
- विचार
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- 17 Mar, 2022

यह हिजाबबाज़ी घोर सांप्रदायिकता, घोर अज्ञान और घोर पोंगापंथ के कारण भी हो सकती है। हमारी मुसलमान माँ-बहनें स्कूलों में ही नहीं, सर्वत्र इससे बचें, इसके लिए कानून से भी ज्यादा जिम्मेदारी है, हमारे मुल्ला मौलवियों की।
धर्म तो शाश्वत और सर्वकालिक होता है और इस तरह की ये बाहरी निशानियाँ देश-काल से बंधी होती हैं। आप जिस देश में जिस काल में रहते हैं, उसकी जरुरतों को देखते हुए इन बाहरी चीज़ों का प्रावधान कर दिया जाता है। इन्हें सार्वकालिक और सार्वदेशिक बना देना तो बड़ा ही हास्यास्पद है।
यदि कनाडा की भयंकर ठंड में कोई पुरोहित सिर्फ धोती या लुंगी पहनकर पूजा-पाठ कराए या विवाह-संस्कार करवाए तो उसे ढेर होने से उसका परमात्मा भी नहीं बचा सकता। कनाडा में सिख पगड़ी पहनें तो वहां के मौसम में वह ठीक है लेकिन अरब देशों में वह आरामदेह रहेगी क्या? इसी तरह पैगंबर मोहम्मद के जमाने में श्रेष्ठी महिलाओं को दुष्कर्मियों से बचाने के लिए और चालू औरतों से अलग दिखाने के लिए हिजाब का चलन शुरु किया गया था।