loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
51
एनडीए
29
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
223
एमवीए
54
अन्य
11

चुनाव में दिग्गज

पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व

आगे

चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला

आगे

गुरमीत राम रहीम सिंह - राजनीति की एक पिटी हुई लकीर!

चुनाव आयोग की टीम का सर्वे ख़त्म होते ही भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा चुनाव का अपना अभियान शुरू कर दिया है। बाक़ी देश में भाजपा भले ही राम के नाम पर चुनाव जीतती हो लेकिन हरियाणा में उसकी प्राथमिकता राम नहीं, राम-रहीम हैं। इसलिए हमेशा की तरह चुनाव आते ही बलात्कार और हत्या के आरोपों में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को फर्लो पर 21 दिन की रिहाई दे दी गई है। यह सब इस उम्मीद में हुआ है कि इन 21 दिनों में गुरमीत राम रहीम अपना जन्मदिन मनाएंगे और भाजपा के लिए हरियाणा विधानसभा के चुनाव और उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में वोट जुटाएंगे।

यह सब तब हुआ है जब अभी चुनाव की तारीख़ें घोषित नहीं हुई हैं। भाजपा ने टिकट बांटने का काम प्रारंभ होने के संकेत नहीं दिए हैं। नेताओं के चुनावी दौरे शुरू नहीं हुए हुए हैं। पार्टी चुनाव किन मुद्दों पर लड़ेगी, यह भी अभी साफ नहीं है। एक तरह से भाजपा का पहला चुनावी दांव राम-रहीम को दी जाने वाली फर्लो ही है।

ताज़ा ख़बरें

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने प्रदेश का मुख्यमंत्री बदल कर यह उम्मीद बांधी थी कि इसी के सहारे लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनावों में उसकी नैया पार लग जाएगी। नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी को लग रहा था कि पिछड़ों का समीकरण उसे चुनाव में जीत दिला देगा। लेकिन चुनाव प्रचार जब आगे बढ़ा तो इन उम्मीदों पर पानी फिरता दिखाई दिया।

लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही बराबर 5-5 सीटें मिलीं। वोट प्रतिशत को पहली नजर में देखें तो लग सकता है कि भाजपा को कांग्रेस से कुछ ज्यादा वोट मिले। लेकिन सच यह है कि कांग्रेस ने सिर्फ नौ सीटों पर ही चुनाव लड़ा था। कुरुक्षेत्र की सीट पर उसने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया था। अगर उन वोटों को भी कांग्रेस के खाते में जोड़ दिया जाए तो प्रतिशत के मामले में कांग्रेस भाजपा से आगे पहुंच जाती है।

राम रहीम के मुद्दे पर लौटने से पहले एक बार 2009 के चुनाव नतीजों पर नजर डाल लेते हैं। तब लोकसभा चुनाव में सारी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं, कांग्रेस सिफर पर थी। लेकिन उसी के तुरंत बाद हुए विधानसभा चुनाव में बिलकुल ही अलग तरह के नतीजे आए।विधानसभा की 90 सीटों में 31 कांग्रेस को मिली थीं। भाजपा 40 सीटें पाकर बहुमत से दूर थी और अंत में उसने दुष्यंत चैटाला से मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। 2009 के नतीजे बताते हैं कि हरियाणा में राजनीतिक चुनौती किस तरह की है।
क्या राम-रहीम के असर के सहारे भाजपा इस चुनौती से पार पा सकती है? इस साल के शुरू में जब आम चुनाव की तैयारियां चल रही थीं तो डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख को 50 दिन लंबी फर्लो इसी उम्मीद में दी गई थी कि उनका असर पार्टी के काम आएगा। क्या वह सचमुच काम आया?

डेरा सच्चा-सौदा का मुख्यालय हरियाणा के सिरसा जिले में है। यह उनके असर का सबसे बड़ा इलाका भी है। इसके अलावा पंजाब के मालवा इलाके और राजस्थान व पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी उनका प्रभाव बताया जाता है।

हम पहले सिरसा को ही लेते हैं। यह धारणा है कि कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा के अनुयाई भाजपा को वोट डाल रहे थे। लेकिन जब नतीजे आए तो कांग्रेस की कुमारी शैलजा ने वहां भाजपा उम्मीदवार को दो लाख 68 हजार से भी ज्यादा वोटों से हराया।

विचार से और

एक दूसरा उदाहरण पंजाब के शिरोमणि अकाली दल का है। 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने गुरमीत राम रहीम से काफी उम्मीद बांधी थी। प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल ने उनसे मुलाकात भी की थी। यही नहीं, बादल के असर में सिखों के धार्मिक नेतृत्व ने भी राम रहीम के खिलाफ दिए गए फैसले को वापस ले लिया था। नतीजा यह हुआ कि अकाली दल आज तक पंजाब की सत्ता में लौट नहीं पाया। हालत यहां तक पहुंच गई है कि सुखबीर सिंह बादल को इसके लिए अकाल तख्त में हाजिर होकर माफी भी मांगनी पड़ी है। 

बेशक कई तरह से एक खास आबादी पर राम रहीम का असर है लेकिन उसके वोटों में बदलने का कोई उदाहरण हमारे सामने नहीं है। गुरमीत राम रहीम सिंह राजनीति की एक पिटी हुई लकीर हैं। भाजपा की दिक्कत यह है कि उसके पास इसके ज्यादा विकल्प भी नहीं हैं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
हरजिंदर
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें