गाँधीजी वैष्णव परिवार से थे जहाँ माँसादि का सेवन तो दूर, नाम लेना तक बिल्कुल वर्जित था। मगर जब वह हाई स्कूल में थे तो उनका एक दोस्त था जो उनको बराबर कहा करता था कि माँस खाना सेहत के लिए अच्छा है। यह दोस्त उनसे उम्र में बड़ा था और वास्तव में गाँधीजी के मँझले भाई का मित्र था। बाक़ी घरवाले उस दोस्त के बारे में अच्छी राय नहीं रखते थे और गाँधीजी को टोका करते थे कि वह उससे दोस्ती न रखें। गाँधीजी बड़ों की आज्ञा तो टाल नहीं सकते थे, इसलिए उनको मनाने के लिए उन्होंने उन्हें यह कहकर समझाया, ’मैं जानता हूँ, उसमें बहुत-सी बुरी आदतें हैं लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं उसकी वे आदतें छुड़वा दूँगा और एक बार वह अपनी वे बुरी आदतें छोड़ दे तो बहुत अच्छा इंसान बन जाएगा। बाक़ी मेरी तरफ़ से आप निश्चिंत रहें।’ घरवाले उनकी बातों से संतुष्ट तो नहीं दिखे लेकिन उन्होंने उनको टोकना बंद कर दिया।