कुछ पर्यटन स्थलों पर ‘ईको पॉइंट्स’ होते हैं जैसी कि मध्य प्रदेश में प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान माण्डू और सतपुड़ा की रानी के नाम से प्रसिद्ध पचमढ़ी के बारे में लोगों को जानकारी है। पर्यटक इन स्थानों पर जाते हैं और ईको पॉइंट पर गाइड द्वारा उन्हें कुछ ज़ोर से बोलने को कहा जाता है। कई बार लोग झिझक जाते हैं कि वे क्या बोलें! कई बार ज़ोर से बोल नहीं पाते या फिर जो कुछ भी बोलना चाहते हैं, नहीं बोलते। आसपास खड़े लोग क्या सोचेंगे, ऐसा विचार मन में आता है। जो हिम्मत कर लेते हैं उन्हें बोले जाने वाला शब्द दूर कहीं चट्टान से टकराकर वापस सुनाई देता है। पर जो सुनाई देता है वह बोले जाने वाले शब्द का अंतिम सिरा ही होता है। शब्द अपने आने-जाने की यात्रा में खंडित हो जाता है। ईको पॉइंट पर बोले जाने वाले शब्द के साथ भी वैसा ही होता है जैसा कि जनता द्वारा सरकारों को दिए जाने वाले टैक्स या समर्थन को लेकर होता है। जनता टैक्स तो पूरा देती है पर उसका दिया हुआ रुपया जब ऊपर टकराकर मदद के रूप में उसी के पास वापस लौटता है तो बारह पैसे रह जाता है। ऐसा तब राजीव गाँधी ने कहा था।
आपातकाल नहीं चाहिए तो फिर कुछ बोलते रहना बेहद ज़रूरी है!
- विचार
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- 28 Jun, 2020

हमें इस बात की तैयारी भी रखनी होगी कि जब हम बोलने की कोशिश करेंगे, हमें बीच में रोका भी जाएगा। याद किया जा सकता है कि गुज़रे दौर के मशहूर अभिनेता अमोल पालेकर जब पिछले साल फ़रवरी में मुंबई में एक कार्यक्रम में अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने की कोशिशों की आलोचना कर रहे थे तो किस तरह से उन्हें बीच में ही रोक दिया गया था और उन्हें अपना बोलना बंद करना पड़ा था।