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फ्रांसीसी टीचर की हत्या: इसलाम पर नई मुसीबत

पैगंबर मुहम्मद के कार्टून छापने पर डेनमार्क के एक प्रसिद्ध अख़बार के ख़िलाफ़ 2006 में सारे इसलामी जगत में और यूरोपीय मुसलमानों के बीच इतने भड़काऊ आंदोलन चले थे कि उनमें लगभग 250 लोग मारे गए थे। 2015 में इन्हीं व्यंग्य-चित्रों को लेकर फ्रांसीसी पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ के 12 पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी। 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

फ्रांस में मज़हब के नाम पर कितनी दर्दनाक खूंरेजी हुई है। एक स्कूल के फ्रांसीसी अध्यापक सेमुअल पेटी की हत्या इसलिए कर दी गई कि उसने अपनी कक्षा में पैगंबर मुहम्मद के कार्टूनों की चर्चा चलाई थी। पैगंबर मुहम्मद के कार्टून छापने पर डेनमार्क के एक प्रसिद्ध अख़बार के ख़िलाफ़ 2006 में सारे इसलामी जगत में और यूरोपीय मुसलमानों के बीच इतने भड़काऊ आंदोलन चले थे कि उनमें लगभग 250 लोग मारे गए थे।

2015 में इन्हीं व्यंग्य-चित्रों को लेकर फ्रांसीसी पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ के 12 पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी। यह पत्रिका इस घटना के पहले सिर्फ 60 हजार छपती थी लेकिन अब यह 80 लाख छपती है। इस व्यंग्य-पत्रिका में ईसाई, यहूदी और इसलाम आदि मज़हबों के बारे में तरह-तरह के व्यंग्य छपते रहते हैं।

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सेमुअल पेटी की हत्या छुरा मारकर की गई। हत्यारे अब्दुल्लाह अज़ारोव की उम्र 18 साल है और वह चेचन्या का मुसलमान है। रुस का चेचन्या इलाका मुसलिम-बहुल है। वहां अलगाववाद और आतंकवाद का आंदोलन कुछ वर्ष पहले इतना प्रबल हो गया था कि रुसी सरकार को अंधाधुंध बम-वर्षा करनी पड़ी थी। 

मुसलमानों को होगी परेशानी

अब फ्रांसीसी पुलिस को अब्दुल्लाह की भी हत्या करनी पड़ी, क्योंकि वह आत्म-समर्पण नहीं कर रहा था। अब्दुल्लाह के परिवार समेत नौ लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, क्योंकि या तो उन्होंने उसे भड़काया था या वे उसके इस अपराध का समर्थन कर रहे थे। इस घटना के कारण अब यूरोप में मुसलमानों का जीना और भी दूभर हो जाएगा। 

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यूरोप के लेाग मज़हब के मामले में अपने ढंग से जीना चाहते हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी का उपयोग करते हुए वे इसलाम, कुरान और मुहम्मद की भी उसी तरह कड़ी आलोचना करते हैं, जैसी कि कुंआरी माता मरियम, मूसा और ईसा की करते हैं। वे पोप और चर्च के ख़िलाफ़ क्या-क्या नहीं बोलते और लिखते हैं। 

महर्षि दयानंद सरस्वती की हत्या

मैं अपने छात्र-काल में अमेरिकी विद्वान कर्नल राॅबर्ट इंगरसोल की किताबें पढ़ता था तो आश्चर्यचकित हो जाता था। वे एक पादरी के बेटे थे। उन्होंने ईसाइयत के परखच्चे उड़ा दिए थे। इसी प्रकार महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने विलक्षण ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के 14 अध्यायों में से 12 अध्यायों में भारतीय धर्मों और संप्रदायों की ऐसी बखिया उधेड़ी है कि वैसा पांडित्यपूर्ण साहस पिछले दो हजार साल में किसी भारतीय विद्वान ने नहीं किया लेकिन उसकी कीमत उन्होंने चुकाई। उन्हें ज़हर देकर मारा गया। उनके अनुयायी पं. लेखराम, स्वामी श्रद्धानंद, महाशय राजपाल आदि की हत्या की गई।

महर्षि दयानंद ने बाइबिल और कुरान की भी कड़ी आलोचना की है लेकिन उनका उद्देश्य ईसा मसीह या पैगंबर मुहम्मद की निंदा करना नहीं था बल्कि सत्य और असत्य का विवेक करना था।

मैं थोड़ा इससे भी आगे जाता हूं। मैं मूर्ति-पूजा का विरोधी हूं लेकिन विभिन्न समारोहों में मुझे तरह-तरह की मूर्तियों और फोटो पर माला चढ़ानी पड़ती है। मैं चढ़ा देता हूं, इसलिए कि जिन आयोजकों ने वे मूर्तियां वहां सजाई हैं, मुझे उनका अपमान नहीं करना है। क्या यह बात हमारे यूरोपीय नेता और पत्रकार खुद पर लागू नहीं कर सकते लेकिन उनसे भी ज्यादा दुनिया के मुसलमानों को सोचना होगा। 

मुसलमानों को खुद से पूछना चाहिए कि इसलाम क्या इतना छुई-मुई पौधा है कि किसी का फोटो छाप देने, आलोचना या व्यंग्य या निंदा कर देने से वह मुरझा जाएगा? अरब जगत की जहालत (अज्ञान) दूर करने में इसलाम की जो क्रांतिकारी भूमिका रही है, उसको देश-काल के अनुरुप ढालकर अपना और दूसरे का भी भला करना मुसलमानों का लक्ष्य होना चाहिए।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार। 

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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