जो किसान आंदोलन 25 जनवरी तक भारतीय लोकतंत्र की शान बढ़ा रहा था, वही अब दुख और शर्म का कारण बन गया है। इस आंदोलन ने हमारे राजनीतिक नेताओं के बौद्धिक और नैतिक दिवालिएपन को उजागर कर दिया है। 26 जनवरी को जो हुआ, सो हुआ लेकिन उसके बाद सरकार को किसान नेताओं से दुबारा संवाद शुरु करना चाहिए था लेकिन उसने किसान नेताओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करनी शुरु कर दी।