भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने के पक्ष-विपक्ष में दलीलें दी जा सकती हैं। लेकिन बिना किसी सबूत के उनके बारे में यह कहना ‘अन्यायपूर्ण’ है कि उन्होंने अयोध्या, रफ़ाल या अन्य मामलों में सरकार समर्थक जो निर्णय दिए, वे राज्यसभा की सदस्यता या किसी और लोभ की ख़ातिर दिए थे। वैसे भी जो निर्णय उन्होंने दिए, वही निर्णय संबद्ध बेंचों के अन्य जजों ने भी दिए थे। लेकिन हम अन्य जजों के फ़ैसले पर तो उंगली नहीं उठा रहे। फिर गोगोई पर ही यह आरोप क्यों?
गोगोई को राज्यसभा सीट 'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' की तरफ़ पहला क़दम?
- विचार
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- 21 Mar, 2020

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के राज्यसभा के लिये मनोनीत होने के बाद से ही अदालती और सियासी महक़मे में ढेरों सवाल उठ रहे हैं और इसे उनके कार्यकाल के दौरान दिये गये फ़ैसलों से जोड़कर देखा जा रहा है। लेकिन क्या ऐसा करना सही होगा? सीजेआई रहते हुए सरकार-समर्थक फ़ैसले देने का कारण यह भी तो हो सकता है कि गोगोई ख़ुद को वैचारिक रूप से सरकार के क़रीब पाते हैं और वह सरकार और न्यायपालिका में दोस्ती कराना चाहते हैं!
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश