भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार करने के पक्ष-विपक्ष में दलीलें दी जा सकती हैं। लेकिन बिना किसी सबूत के उनके बारे में यह कहना ‘अन्यायपूर्ण’ है कि उन्होंने अयोध्या, रफ़ाल या अन्य मामलों में सरकार समर्थक जो निर्णय दिए, वे राज्यसभा की सदस्यता या किसी और लोभ की ख़ातिर दिए थे। वैसे भी जो निर्णय उन्होंने दिए, वही निर्णय संबद्ध बेंचों के अन्य जजों ने भी दिए थे। लेकिन हम अन्य जजों के फ़ैसले पर तो उंगली नहीं उठा रहे। फिर गोगोई पर ही यह आरोप क्यों?