21-22 मार्च 1977 की मध्य रात्रि थी जब हमने आकाशवाणी पर उस समय के मशहूर समाचार वाचक अशोक वाजपेयी की तैरती आवाज़ में पहली बार सुना कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी रायबरेली से चुनाव हार गयी हैं। उनके प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने उन्हें 55 हज़ार वोटों से पराजित कर दिया था। इस संक्षिप्त सी खबर में सिर्फ़ यही 2 लाइन थीं।
आपातकाल : बड़े धोखे हैं इस राह में
- विचार
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- 26 Jun, 2021

भारतीय लोकतंत्र का अपनी जड़ों में कमज़ोर होना और किसी भी सत्ताधीश का इन जड़ों में पानी न डालकर इन्हें सुखा डालना इतना आसान क्यों है? क्या वजह है कि जब-जब सत्ता के केंद्र पर सवार सत्ताधिपति ने अधिनायक बनना चाहा उसे न तो न्यायपालिका ने थामने की कोशिश की और न मीडिया उसके ख़िलाफ़ अपने हथियार लेकर खड़ा हो सका।
मैं अपने सहपाठी अनूप के आगरा स्थित जयपुर हाउस कॉलोनी के फ़्लैट में उसके साथ था। कोई दो या ढाई बजे का वक़्त रहा होगा जब रेडियो पर पहली बार उक्त घोषणा हुई। यह बड़े ही संकीर्ण और सीमित कम्युनिकेशन का युग था।
सिर्फ़ रेडियो ही आधा-आधा घंटे-घंटे पीछे खबर दे सकने वाला एक मात्र संसाधन था लेकिन उस पर भी सरकार का कंट्रोल था। उस घर में उस रात सिर्फ़ हम दो जन ही थे। हम सरे शाम किरोसिन के स्टोव पर चाय बनाते रेडियो की ख़बरों से चिपटे हुए थे।