चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश के बीजेपी और कांग्रेस नेताओं को वाणी-संयम के जो निर्देश दिए हैं, वे बहुत सामयिक हैं लेकिन कांग्रेसी नेता कमलनाथ का ‘मुख्य चुनाव-प्रचारक’ का दर्जा छीनकर उसने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि अब अदालत ही उसका फ़ैसला करेगी।
कमलनाथ पर चुनाव आयोग की ज़्यादा सख़्ती सही या ग़लत?
- विचार
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- 2 Nov, 2020

ऐसे नाजुक वक्त में चुनाव आयोग यह तो ठीक कर रहा है कि वह नेताओं पर उंगली उठाता है लेकिन उसे सख्त क़दम तभी उठाना चाहिए जबकि वाकई कोई नेता बहुत ही आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करे। वरना चुनाव-प्रचार बिल्कुल उबाऊ और नीरस हो जाएगा। चुनाव आयोग यदि ज्यादा नज़ाकत दिखाएगा तो उसे आपत्तिजनक शब्दों की इतनी बड़ी सूची तैयार करनी पड़ेगी कि वह किसी भी शब्दकोष से टक्कर लेने लगेगी।
अदालत क्या फ़ैसला करेगी और कब करेगी, यह देखना है लेकिन विचारणीय तथ्य यह है कि चुनाव आयोग को क्या इतनी सख्ती बरतनी चाहिए, जितनी वह बरत रहा है?