राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ के सबसे महत्वपूर्ण निर्वाचित पद यानी सर कार्यवाह के लिए दत्तात्रेय होसबोले को चुन लिया गया है। सर कार्यवाह को आरएसएस का सीईओ माना जाता है और संघ के आनुषांगिक संगठनों से जुड़े सभी नीतिगत फ़ैसलों में उनकी अहम भूमिका होती है।
होसबोले का इस पद पर चुनाव संघ के उन आलोचकों के लिए जवाब हो सकता है जो उसे लोकतांत्रिक संगठन नहीं मानते या फिर बदलाव के लिए तैयार नहीं मानते।
बदलाव की शुरुआत
होसबोले का चयन संघ में एक नए बदलाव की कहानी की शुरुआत है। खुद को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन कहने वाले आरएसएस में राजनीतिक सोच समझ वाले व्यक्तित्व को ज़िम्मेदारी देने की अहम घटना है। वे संघ के 16वें सर कार्यवाह चुने गए हैं।
होसबोले का सर कार्यवाह के तौर पर चुना जाना संघ में मूल संगठन में संघ परिवार की भूमिका को स्वीकृति मिलने का इशारा है। यानी संघ के संगठन में अब इस बात को स्वीकार कर लिया गया है कि संघ के सहयोगी सगंठनों से जुड़े लोगों को भी सर्वोच्च पद की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है।
मदन दास देवी क्यों नहीं बने सर कार्यवाह?
इससे पहले मदन दास देवी सर कार्यवाह इसीलिए शायद नहीं बन पाए क्योंकि बहुत से लोग इसके लिए तैयार नहीं थे कि विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे देवी को सर कार्यवाह की ज़िम्मेदारी सौंपी जाए। फिर ऐसा ही 2018 में हुआ जब होसबोले को सर कार्यवाह बनाने के बजाय चौथी बार भैयाजी जोशी की ही चुनना बेहतर समझा गया जबकि भैयाजी जोशी खुद स्वास्थ्य कारणों से पदमुक्त होना चाहते थे।
आरएसएस में सरसंघचालक चेहरे के तौर पर प्रमुख होते हैं,लेकिन उनकी भूमिका फिलोसोफ़र और गाइड की होती है जबकि नीतिगत नेतृत्व सरकार्यवाह ही करते हैं। मौजूदा सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत भी लंबे समय तक सरकार्यवाह रहे। वैसे सबसे लंबे समय 13 साल तक एच. वी. शेषाद्रि सर कार्यवाह की ज़िम्मेदारी संभालते रहे। संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर सबसे कम समय तक केवल एक साल सर कार्यवाह के पद पर रहे हैं, जबकि के. एस. सुदर्शन को छोड़कर सभी सरसंघचालक पहले सर कार्यवाह रहे हैं।
संघ के विचारक दिलीप देवधर मानते हैं,
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“होसबोले सर कार्यवाह की ज़िम्मेदारी संभालने से आरएसएस का ज़्यादा उदारवादी चेहरा सामने आएगा और संघ और बीजेपी के बीच रिश्ते और बेहतर हो सकेंगे।"
दिलीप देवधर, विचारक, आरएसएस
1968 में बने स्वयंसेवक
उन्होंने इसके आगे कहा, "दोनों संगठनों और सरकार और संघ के बीच बेहतर तालमेल हो पाएगा। भविष्य में संघ की शाखाओं में बदलाव देखने को मिल सकता है। इंटरनेट शाखाएं बढ़ सकती हैं और युवाओं को बड़ी भूमिका मिलेगी।”
1 दिसम्बर 1955 को कर्नाटक के शिमोगा में जन्मे दत्तात्रेय 1968 में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए और 1972 में विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। क़रीब 15 साल तक वे परिषद् के संगठन महामंत्री रहे। इमरजेंसी के दौरान 16 महीनों तक मीसा के तहत जेल में रहे। जेल में ही उन्होंनें दो पत्रिकाओं का संपादन किया।
दतात्रेय ने गुवाहाटी में युवा विकास केन्द्र को चलाने में अहम भूमिका निभाई और अंडमान निकोबार और उत्तर पूर्व में विद्यार्थी परिषद को बढ़ाने का काम किया।
बेंगलुरु में हुई संघ की प्रतिनिधि सभा ने भविष्य के रास्ते में होने वाले बदलावों के संकेत दे दिए हैं। अरुण कुमार सह सर कार्यवाह बनाए गए हैं। संघ के भविष्य योजना पर किताब लिखने वाले सुनील आम्बेकर को अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
युवा आम्बेकर भी विद्यार्थी परिषद से रहे हैं। रामलाल जी को अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख, आलोक जी को अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख बनाया गया है । राम माधव को फिर से बीजेपी से संघ में बुला लिया गया है और उन्हें अखिल भारतीय कार्यकारिणी में जगह दी गई है।
सर कार्यवाह के तौर पर दत्तात्रेय का पहला कार्यकाल साल 2024 में पूरा होगा जब देश में आम चुनाव हो रहे होंगें और 2025 में आरएसएस अपनी जन्म शताब्दी मना रहा होगा। यानी, उनको दूसरा कार्यकाल मिल जाएगा और फिर वे डॉ भागवत के बाद सरसंघचालक की ज़िम्मेदारी संभालने के लिए विचार किए जा सकते हैं।
कर्नाटक से आए दत्तात्रेय से संघ और बीजेपी को उम्मीद है कि दक्षिण भारत में कमल के फूल को आगे बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। अभी एक सह सरकार्यवाह सी. आर. मुकुंद भी कर्नाटक से हैं और बीजेपी के संगठन महासचिव बी. एल. संतोष भी कर्नाटक से हैं।
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