प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में यह सुझाव दिया कि अदालतों की कार्रवाई स्थानीय भाषाओं में होनी चाहिए क्योंकि आम लोग अदालती भाषा और फ़ैसलों को समझ नहीं पाते। प्रधानमंत्री ने सही कहा लेकिन इसके लिए जज भी ऐसे नियुक्त करने पड़ेंगे जो स्थानीय भाषाओं और उसके मुहावरों और कहावतों को समझते हों वरना वे स्थानीय कहावतों और मुहावरों का इस्तेमाल करने पर ही लोगों को कारावास की सज़ा दे देंगे।
‘राजा तो नंगा है' कहने पर क्या सज़ा होगी मिलॉर्ड?
- विचार
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- 2 May, 2022

दिल्ली में रहकर कोई 'चंगा' शब्द का अर्थ न जानता हो तो हैरत होना स्वाभाविक है। लेकिन उस पर भी जज साहेब ने सवाल पूछा कि यह 'चंगा' शब्द का इस्तेमाल क्यों किया गया। ख़ालिद के वकील को समझाना पड़ा कि चंगा का मतलब अच्छा होता है और इस शब्द का इस्तेमाल व्यंग्य के तौर पर किया गया है।
हाल में ऐसा ही एक वाक़या प्रकाश में आया जब दिल्ली उच्च न्यायालय में विद्वान जज 'जुमला' जैसे शब्द से उखड़ गए और कहने लगे कि यह शब्द तो प्रधानमंत्री की शान में गुस्ताख़ी है। इसके साथ ही उनको 'चंगा' और 'इनक़लाब' जैसे शब्दों के अर्थ समझने में भी दिक़्क़त हुई। हैरत की बात यह है कि इनमें से कोई भी जज दक्षिण भारत के नहीं हैं कि उनको हिंदी नहीं आती हो।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश