“हिन्दू धर्म ख़तरे में है”। अमूमन यह नारा अब तक भारत में नहीं लगाया जाता था। इस तरह का नारा “इसलाम ख़तरे में है” मुसलिम देशों में और भारत के कई हलकों में लगते रहे हैं। आज़ादी के समय मुसलिम लीग ने ये नारे ख़ूब लगाये और भारत के मुसलमानों को बरगला कर देश के विभाजन की नींव रखी और बाद में देश का विभाजन भी हो गया। “इसलाम ख़तरे में है” की तर्ज़ पर आरएसएस और बीजेपी ने “हिंदू धर्म ख़तरे में है” का नारा लगाना और इस की आड़ में चुनाव जीतने के लिए हिंदुओं के एक बड़े तबक़े को बरगलाना शुरू कर दिया है। हाल के दिल्ली चुनावों में ज़मीन पर बीजेपी और आरएसएस के लोगों ने पार्टी के पक्ष में वोट मोबिलाइज करने के लिए किसी भी हद तक जाकर लोगों के दिमाग़ को ज़हरीला करने का काम किया। इसका असर भी दिखा है। दिल्ली में बीजेपी का वोट शेयर छह फ़ीसदी बढ़ा है।
बीजेपी ने वोट के लिए गंगा जल देकर क़समें खिलाईं और डराया- ‘हिंदू ख़तरे में’ है
- विचार
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- 16 Feb, 2020

चुनाव से पहले बैठक में तय किया गया कि ब्लॉक के स्तर पर, गाँव के स्तर पर, मुहल्ला स्तर पर और अपार्टमेंट के स्तर पर संघ के कार्यकर्ता पंद्रह-पंद्रह और बीस-बीस लोगों की मीटिंग बुलाएँगे और इनमें “हिंदू ख़तरे में है” की बात लोगों के दिमाग़ में बैठाई जाएगी! ये महज़ इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने इसी समय यह बयान दिया था, “ये लोग हमारे घरों में घुसेंगे, हमारी लड़कियों को उठायेंगे और बलात्कार करेंगे।”
दरअसल, बीजेपी के नेतृत्व को जनवरी के महीने में ही इस बात का एहसास हो गया था कि आम आदमी पार्टी बहुत मज़बूत स्थिति में है और हो सकता है बीजेपी इस बार अपना खाता भी न खोल पाए। यह वो वक़्त था जब सी-वोटर के सर्वे ने बताया था कि “आप” और बीजेपी में तीस फ़ीसदी से ज़्यादा वोटों का फ़र्क़ है और बीजेपी का वोट शेयर 32% खिसक कर 26% पर आ गया है। बीजेपी समर्थक एक बड़ा मध्य वर्ग “आप” की तरफ़ आकर्षित हुआ है। यह बीजेपी के लिए बड़ी ख़तरे की घंटी थी। बीजेपी और आरएसएस के शीर्ष नेताओं की जानकारी में जब यह बात आयी तो फिर इसकी काट की रणनीति बनी। एक उच्च पदस्थ सूत्र के मुताबिक़ जनवरी के मध्य में इस बात चर्चा हुई थी। तमाम विकल्पों पर चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि ज़मीन पर हिंदू-मुसलमान कराए बग़ैर सम्मानजनक वोट नहीं मिलेगा।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।