सेक्युलर राजनीति ने दलित राजनीति करने वाले नेताओं का बुरा हाल कर दिया है। इस कदर कि उनकी पहचान ही ख़त्म होती जा रही है और दलित नेताओं को जनप्रतिनिधि के तौर पर उनके दलित समाज से ही मान्यता मिलती कम होती जा रही है। पहली नज़र में यह बात बड़ी अजीब लगती है लेकिन भारत में दलित राजनीति करने वाले नेताओं की स्थिति दरअसल कुछ ऐसी ही हो गई है और उसकी बड़ी वाजिब वजहें हैं।
सेक्युलर राजनीति की भेंट चढ़ते दलित नेता
- विचार
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- 16 Jun, 2020

सेक्युलर राजनीति ने दलित राजनीति करने वाले नेताओं का बुरा हाल कर दिया है। इस कदर कि उनकी पहचान ही ख़त्म होती जा रही है और दलित नेताओं को जनप्रतिनिधि के तौर पर उनके दलित समाज से ही मान्यता मिलती कम होती जा रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो नाराज़ होकर उदित राज कांग्रेस में चले गये और कांग्रेस ने उत्तर पश्चिमी दिल्ली की सीट से उन्हें टिकट दे दिया लेकिन कांग्रेस के टिकट पर उदित राज भारतीय जनता पार्टी के हंसराज हंस से हार गये। उत्तर पश्चिमी दिल्ली सुरक्षित सीट है। अब यहाँ इस बात को समझना ज़रूरी है कि हंसराज हंस मशहूर गायक हैं लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित दिल्ली की उत्तर पश्चिम लोकसभा से उम्मीदवार घोषित किया तो ज़्यादातर लोगों के लिए चौंकाने वाली बात यही थी कि क्या हंसराज हंस दलित हैं। हंसराज हंस की पहचान कभी दलित के तौर पर नहीं रही, उनकी पहचान गायक के तौर पर लोगों के दिलोदिमाग में जमी थी। उम्मीदवारी घोषित होने के बाद लोगों को भरोसा हुआ कि हंसराज हंस दलित हैं जबकि उन्होंने जिन उदित राज को हराया, उन उदित राज की पूरी पहचान ही दलित नेता की रही है।