राजस्थान में अशोक गहलोत की कुर्सी फ़िलहाल बची रहेगी लेकिन कांग्रेस के खाते में यह कुर्सी कितनी देर तक रहेगी और कुर्सी रह भी गयी तो कांग्रेस का क्या भविष्य होगा, इसकी चर्चा इस वक़्त बेहद ज़रूरी है। लोकतंत्र में ज़रूरी है कि विपक्ष मज़बूत हो और भारतीय लोकतंत्र में भले ही बहुदलीय राजनीति चल रही हो लेकिन सच यही है कि भारतीय राजनीति त्रिकोणीय है। कांग्रेस, बीजेपी और वामपंथ।
गाँधी परिवार के लिए कुर्सी बड़ी या कांग्रेस?
- विचार
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- 16 Jul, 2020

आयु ज़्यादा होने से सोनिया गाँधी अब कांग्रेस को आगे बढ़ाने की अवस्था में नहीं हैं और राहुल गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष दोबारा बन भी गये तो उनसे ज़्यादा प्रभाव प्रियंका का ही रहेगा। गाँधी परिवार के दरबारियों को छोड़िए, लेकिन कांग्रेस के हर शुभचिंतक को यह बात अच्छे से समझने की कोशिश करनी चाहिए। कांग्रेस, लोकतंत्र और देश के लिए यह समझना बेहद ज़रूरी है।
वामपंथी राजनीतिक दलों ने समय से राजनीतिक हिंसा के ज़रिये आगे बढ़ने का अपना चरित्र पहले ही पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में उजागर कर दिया। इसकी वजह सरोकारी राजनीति का दावा करने के बाद भी देश के दूसरे हिस्सों में 1952 के पहले चुनाव के बाद मिली स्वीकार्यता भी सीमित हो गई और वामपंथी सिर्फ़ कांग्रेस सरकारों की कृपा से बौद्धिक, शैक्षिक संस्थानों पर क़ब्ज़ा करके ही ख़ुश हैं। कुल मिलाकर अब देश में बीजेपी और कांग्रेस ही है। लगभग सभी जातिवादी और व्यक्तिवादी पार्टियाँ जो अलग-अलग प्रदेशों में सत्ता में हैं, भारतीय जनता पार्टी के सामने कांग्रेस की ही खाली जगह को भर रही हैं। इसलिए भारतीय राजनीति के दो ध्रुवीय हो जाने की ज़मीनी सच्चाई समझकर बात करने से ही ठीक से समझ आएगा। एक प्रश्न आप लोगों के मन में यह भी आ रहा होगा कि सचिन पायलट के हटने और अशोक गहलोत के काबिज रह जाने भर से मैं यह प्रश्न क्यों खड़ा कर रहा हूँ कि गाँधी परिवार के लिए कुर्सी बड़ी है या कांग्रेस।