25 मार्च से कोरोना वायरस के डर के कारण भारत एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में है, और अब स्थिति का एक बार फिर से आकलन करने का समय आ गया है।
क्या कोरोना एक ऐसा ख़तरा है जो देशव्यापी लॉकडाउन के लायक है? मेरा मानना है कि यह उतना गंभीर विषय नहीं है, और 24 मार्च की शाम को प्रधानमंत्री द्वारा देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा, विशेषज्ञों के साथ उचित परामर्श के बिना और इतने गंभीर निर्णय लेने के सभी पहलुओं पर विचार किए बिना एक जल्दबाज़ी की प्रतिक्रिया थी। हम इस मामले पर कुछ विस्तार से विचार कर सकते हैं।
यू.एस. सेंटर फ़ॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, फ्लू (इन्फ्लूएंजा) से हर साल दुनिया भर में लगभग 646,000 लोगों की मृत्यु होती है— यानी प्रति दिन लगभग 2000 लोगों की मृत्यु। इनमें से बड़ी संख्या में मौतें भारत में होती हैं।
2016 में, 20 करोड़ से अधिक लोगों को मलेरिया हुआ, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 700,000 मौतें (यानी लगभग 2,000 प्रति दिन मृत्यु) हुईं। इनमें से भी अधिकतर मृत्यु भारत में हुई।
सालाना लगभग 40 करोड़ लोग डेंगू से संक्रमित होते हैं, जिससे लगभग 22,000 लोगों की मृत्यु होती है, जिनमें ज़्यादातर बच्चे होते हैं।
हर साल 15 लाख लोग टी.बी. से मरते हैं, जिनमें से अधिकतर मृत्यु भारत में होती है।
सालाना 38 लाख लोग मधुमेह से मरते हैं।
2017 में, दुनिया में 96 लाख लोग कैंसर से मर गए। इनमें से बड़ी संख्या में मौतें भारत में होती हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 में, दुनिया में 82 करोड़ लोग भूखे पेट सोए, उनमें से अधिकांश भारतीय थे।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स और यूनिसेफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 साल से कम उम्र के 48% बच्चे कुपोषित हैं, और इनमें से अधिकांश अपनी सारी ज़िंदगी कुपोषित रहेंगे। इससे आप कोई केवल भुखमरी से होने वाली मौतों का अनुमान लगा सकते हैं।
मैं कोरोना वायरस की गंभीरता पर संदेह नहीं कर रहा हूँ, लेकिन यह बताना चाहता हूँ कि भारत के लिए इसका ख़तरा बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है (मैं अमेरिका और यूरोप का ज़िक्र नहीं कर रहा हूँ)।
कोरोना वायरस, लॉकडाउन के बिना हज़ारों भारतीयों को मार सकता है, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह निश्चित तौर पर भुखमरी से लाखों लोगों को मार देगा। इसका कारण यह है कि लगभग 90% भारतीय वर्कफ़ोर्स (लगभग 40-45 करोड़ लोग) हमारी अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक/असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं- जैसे कि दिहाड़ी मज़दूर, प्रवासी कामगार इत्यादि। इन लोगों के पास नौकरी की कोई स्थायी सुरक्षा नहीं है, और उन्हें रोज़ाना खाने के लिए काम करना पड़ता है, अन्यथा वे और उनके परिवार भूखे रह जाएँगे। लॉकडाउन के कारण वे अपनी आजीविका से वंचित हो गए हैं। इसके परिणामस्वरूप खाद्य दंगे हो सकते हैं और क़ानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है। पालघर में जो हुआ, उसे देश भर में दोहराया जा सकता है।
इस सबके अलावा, लॉकडाउन उन सभी लोगों के लिए भारी कठिनाइयों का कारण बन रहा है जो पूरे देश में फँसे हुए हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था, जो इस महामारी से पहले ही बुरी स्थिति में थी, राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण और ख़राब हो गई है।
मैं कहना चाहता हूँ कि अब सरकार को पूरे देश को लॉकडाउन करने की अपनी ग़लती को स्वीकार करते हुए लॉकडाउन को समाप्त करना चाहिए, अन्यथा समस्या वास्तव में और गंभीर हो जाएगी।
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