इससे ज़्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि कोरोना के मसले को भी हिंदू-मुसलमान का रंग दिया जा रहा है। इंदौर और मुरादाबाद में डाॅक्टरों और नर्सों पर जो हमले किए गए हैं, उनकी जितनी निंदा की जाए, कम है। क्या कोई कल्पना भी कर सकता है कि जो लोग अपनी जान ख़तरे में डालकर आपकी जान बचाने आए हैं, आप उन्हीं पर पत्थर बरसा रहे हैं। यह किसी इंसान का काम तो नहीं हो सकता। यह तो शुद्ध जानवरपना है। ऐसा क्यों हो रहा है?
इसका कारण अफवाहें हैं। ग़लतफहमियाँ हैं। भीड़ भरे मोहल्लों और झोपड़पट्टियों में ऐसी ग़लतफहमियाँ फैला दी गई हैं कि ये डाॅक्टर तुम्हारे इलाज के लिए नहीं, तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए आ रहे हैं। ये तुम्हें पहले पकड़वाएँगे और फिर इलाज के बहाने ऐसी सुई लगा देंगे, जो या तो तुम्हें नपुंसक बना देगी या मौत के घाट उतार देगी। ये अफ़वाहें फैलानेवाले लोग कौन हैं? ये सब लोग जमाती नहीं हैं। उनमें से कुछ हैं।
जमाते-तब्लीग़ी ने देश के मुसलमानों के बीच कोरोना किस रफ्तार से फैलाया, यह सबको पता है। उन्होंने जाने-अनजाने ही देश के मुसलमानों को भयंकर नुक़सान तो किया ही, इसलाम की बदनामी भी की। कुछ मुसलिम नेताओं और कुछ प्रसिद्ध मुसलमानों ने दबी ज़ुबान से इन तब्लीग़ियों की आलोचना तो की लेकिन उन्होंने कड़ी भर्त्सना नहीं की। यह संतोष का विषय है कि भाजपा की सरकार ने इस सारे मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश नहीं की।
मैं देश के मुसलिम नेताओं, मौलानाओं, काज़ियों, कलाकारों, लेखकों, बुद्धिजीवियों आदि सभी से अनुरोध करता हूँ कि इंदौर के सलीम भाई के बेटे और प्रसिद्ध फ़िल्मी-सितारे सलमान ख़ान की तरह वे हिम्मत करें और दो-टूक बयान जारी करें। जब कोरोना बिना भेद-भाव के सबके प्राण लेने पर उतारू है, तब हम इंसान लोग हिंदू-मुसलमान, ऊँच-नीच, ग़रीब-अमीर का भेदभाव क्यों कर रहे हैं?
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