इससे ज़्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि कोरोना के मसले को भी हिंदू-मुसलमान का रंग दिया जा रहा है। इंदौर और मुरादाबाद में डाॅक्टरों और नर्सों पर जो हमले किए गए हैं, उनकी जितनी निंदा की जाए, कम है। क्या कोई कल्पना भी कर सकता है कि जो लोग अपनी जान ख़तरे में डालकर आपकी जान बचाने आए हैं, आप उन्हीं पर पत्थर बरसा रहे हैं। यह किसी इंसान का काम तो नहीं हो सकता। यह तो शुद्ध जानवरपना है। ऐसा क्यों हो रहा है?
कोरोना संकट में भी हिंदू-मुसलमान कौन ढूँढ रहा है?
- विचार
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- 17 Apr, 2020

क्या ऐसे राष्ट्रीय संकट के समय में भी हम लोग एकता का परिचय नहीं दे सकते? ऐसे संकट-काल में ये निराधार अफवाहें सबसे ज़्यादा नुक़सान किसका करती हैं? ग़रीबों का, कम पढ़े-लिखे लोगों का, बेज़ुबान लोगों का, कमज़ोर लोगों का! इसीलिए यह ज़रूरी है कि वे किसी के बहकावे में न आएँ।
इसका कारण अफवाहें हैं। ग़लतफहमियाँ हैं। भीड़ भरे मोहल्लों और झोपड़पट्टियों में ऐसी ग़लतफहमियाँ फैला दी गई हैं कि ये डाॅक्टर तुम्हारे इलाज के लिए नहीं, तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए आ रहे हैं। ये तुम्हें पहले पकड़वाएँगे और फिर इलाज के बहाने ऐसी सुई लगा देंगे, जो या तो तुम्हें नपुंसक बना देगी या मौत के घाट उतार देगी। ये अफ़वाहें फैलानेवाले लोग कौन हैं? ये सब लोग जमाती नहीं हैं। उनमें से कुछ हैं।