कई लोगों ने मुझसे पूछा है कि कोरोना-संकट का भारत की विदेश नीति पर क्या असर पड़ा है, आप बताइए। असलियत तो यह है कि कोरोना का युद्ध इतना गंभीर है कि यह पूरा पिछला एक महीना हम सब लोग अंदरुनी सवालों से ही जूझते रहे। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि इस कोरोना-संकट के दौरान भारत की विश्व-छवि बेहतर ही हुई है।
पहली बात तो यह हुई कि इस संकट के दौरान सारा भारत एक होकर लड़ रहा है। भारत के पक्ष और विपक्ष का रवैया वैसा नहीं है, जैसा अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ब्राजील जैसे देशों में देखने में आ रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सभी दलों के मुख्यमंत्री पूरी तरह साथ दे रहे हैं।
दूसरा, भारत की जनता तालाबंदी का पालन जिस निष्ठा के साथ कर रही है, वह दूसरे देशों के लिए एक मिसाल बन गई है। विश्व स्वास्थ्य-संगठन ने स्पष्ट शब्दों में भारत की तारीफ़ की है।
तीसरा, भारत ने कोरोना के जाँच-यंत्र और करोड़ों मुखपट्टियाँ तैयार कर ली हैं। भारत से कुनैन की करोड़ों गोलियाँ अमेरिका समेत 55 देशों ने आग्रहपूर्वक मँगवाई हैं। एक अर्थ में भारत को पहली बार विश्व-त्राता का विहंगम रूप मिला है।
चौथा, भारत सरकार ने हज़ारों प्रवासियों को विदेशों से भारत लौटाने में जो मुस्तैदी दिखाई है, उसकी भी सराहना हो रही है।
पाँचवाँ, दुनिया को आश्चर्य है कि 140 करोड़ लोगों के इस विकासमान राष्ट्र में कोरोना का प्रकोप इतना कम क्यों हो रहा है? सारी दुनिया में यह चर्चा का विषय है।
छठा, भारतीय भोजन में पड़नेवाले मसाले घरेलू औषधियों का काम कर रहे हैं। विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय भी इसीलिए कोरोना के शिकार कम हो रहे हैं। आयुर्वेद का डंका सारे विश्व में बज रहा है।
सातवाँ, भारत ने दक्षेस राष्ट्रों को कोरोना के ख़िलाफ़ सावधान करने की पहल की और दक्षेस-कोष में बड़ी राशि दान की। प्रधानमंत्री दक्षेस-राष्ट्रों के नेताओं से निरंतर संपर्क में हैं। पड़ोसी देशों पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ रहा है।
नौवाँ, दुनिया का कोई भी देश कोरोना को लेकर भारत पर वैसे आरोप नहीं लगा रहा है, जैसे चीन और अमेरिका पर लग रहे हैं।
दसवाँ, भारत सरकार ने चीन जैसे देशों के विनियोग पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं ताकि वे भारतीय कंपनियों पर कब्जा न कर सके।
ग्यारहवाँ, विश्व-व्यापार में चीन को जो धक्का लगनेवाला है, उसका फ़ायदा भारत को ज़रूर मिलेगा। कुल मिलाकर कोरोना के संकट के दौरान विश्व में भारत की छवि ऊँची उठी है।
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