ऐसा लगता है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका की पहल अब शायद परवान चढ़ जाएगी। पिछले साल अक्टूबर में इन दोनों देशों ने मांग की थी कि कोरोना के टीके का एकाधिकार ख़त्म किया जाए और दुनिया का जो भी देश यह टीका बना सके, उसे यह छूट दे दी जाए। विश्व व्यापार संगठन के नियम के अनुसार कोई भी किसी कंपनी की दवाई की नकल तैयार नहीं कर सकता है। प्रत्येक कंपनी किसी भी दवा पर अपना पेटेंट करवाने के पहले उसकी खोज में लाखों-करोड़ों डाॅलर ख़र्च करती है। दवा तैयार होने पर उसे बेचकर वह मोटा फायदा कमाती है। यह फायदा वह दूसरों को क्यों उठाने दें?
कोरोना के टीके पर बड़े देशों का एकाधिकार क्यों ख़त्म हो?
- विचार
- |
- |
- 8 May, 2021

इस समय उन्नत देशों से आशा की जाती है कि वे दरियादिली दिखाएँगे। वे अपनी कंपनियों से पूछें कि क्या कोरोना से उन्होंने कोई सबक़ नहीं सीखा? अपने एकाधिकार से वे पैसे का अंबार ज़रूर लगा लें लेकिन ऊपर से बुलावा आ गया तो वे उस पैसे का क्या करेंगे? वे जरा भारत को देखें। भारत ने कई जरूरतमंद देशों को करोड़ों टीके मुफ्त में बाँट दिए या नहीं?
इसीलिए पिछले साल भारत और दक्षिण अफ्रीका की इस मांग के विरोध में अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, स्विट्ज़रलैंड जैसे देश उठ खड़े हुए।