बंगाल के विधानसभा चुनाव ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिये हैं। जिस तरह हिंदू-मुसलमान में बँटवारा किया जा रहा है, मुसलमानों को पराया बनाने की कोशिश की जा रही है, क्या वह देश हित में है? क्या भारत में अल्पसंख्यक तबक़े को पूरी तरह से हाशिये पर डाल देने की कोशिश सही है? और जो लोग अखंड भारत का सपना लेकर सत्ता पर क़ाबिज़ हैं, और जो विभाजन के दंश से पीड़ित देश को उबारने का दावा करते हैं, क्या वे उस ख़तरे को समझ रहे हैं जिसकी क़ीमत एक बार मुल्क विभाजन के रूप में दे चुका है? पिछले दिनों भारत बँटवारे के लिये ज़िम्मेदार मुहम्मद अली जिन्ना की आत्मकथा पढ़ते हुए ये सवाल दिमाग़ में घूमे! और ऐसा लगा कि आज़ादी के 74 साल बाद देश एक बार फिर ग़लती करने जा रहा है।