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प्रतीकात्मक तसवीर।

नेता बौने, लेकिन महान जनता ऐसे बचा रही एक-दूसरे की जानें 

रात के 12.30 बजे मनीष सिंह का फ़ेसबुक पर जवाब आता है- सर, इनको एंबुलेंस मिल गई है। बात हो गई। आप कंफर्म कर सकते हैं। मैंने रात 12 बजे के आसपास गाज़ियाबाद से आए एक मैसेज को अपने फ़ेसबुक वॉल और ट्विटर पर शेयर किया था। आधे घंटे में निदान मिल गया। मनीष से सीधे तौर पर परिचित नहीं, लेकिन अब उनका नाम जीवन में शायद ही भूल पाऊँ।

मनीष का जब मैसेज आया उससे पहले विपाशा तिवारी ने जवाब भेजा- इनका केस सॉल्व हो गया है। इनको मैंने ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवा दिया है। आप अब ये मैसेज शेयर मत कीजिएगा। मैंने लिखा- शुक्रिया विपाशा। जवाब आया- सर कोई और ज़रूरत हो तो बताइएगा। मैंने रात 10.30 बजे के आसपास एक बुजुर्ग जिनका ऑक्सीजन लेवल 40 के आसपास आ गया था, उनको ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाने के लिए पोस्ट डाली, ट्वीट किया। डेढ़ घंटे में उनकी जान बचाने का इंतज़ाम हो गया। ऊपर से आश्वासन भी कि कुछ और हो तो बताइए, हो जाएगा।

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रात के डेढ़ बजे भी लखनऊ में कंचन सिंह चौहान जाग रही हैं। मुझे फेसबुक के इनबॉक्स में लिखती हैं- आप परेशान ना हों। रेखा जोशी के घर मैं बात कर रही हूँ। मैं आज रात ही उनको एडमिट कराने की कोशिश कर रही हूँ। इसीलिए जगी भी हूँ। कंचन सिंह चौहान, कौन हैं मुझे नहीं मालूम। लेकिन लखनऊ में एक अच्छे खासे परिवार की 52 साल की महिला मौत के सामने लाचार पड़ी हैं। उस महिला का ऑक्सीजन लेवल लगातार गिरता जा रहा है। शहर के सीएमओ के पास वो क्रिटिकल केस के तौर पर रजिस्टर्ड हैं। लेकिन कहीं कोई बेड नहीं, इलाज का इंतज़ाम नहीं। परिवार छटपटा रहा है। रात 11 बजे के आसपास उनलोगों को मेरे बारे में किसी ने बताया होगा, नंबर दिया होगा- फोन आया और अपना दुखड़ा रोने लगे। मैंने कहा जो स्थिति है, आप मुझे मैसेज कीजिए, मैं देखता हूं। उनका मैसेज आया और मैंने स्थिति बताकर उनके मैसेज को फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया और ट्वीट भी। बहराइच से अनुराग पाठक ने मैसेज किया- सर अदना सा इंसान हूं, लेकिन बहराइच में उन्हें ऑक्सीजन बेड दिलवा सकता हूँ। मैंने कहा- आपका शुक्रिया अनुराग, मगर अभी उनकी हालत नाजुक है और वो ट्रेवल नहीं कर सकतीं। इसी सिलसिले में कंचन सिंह चौहान का मैसेज आया। वे जोशी परिवार के संपर्क मे आ गईं और जब मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं तो उनका ऑडियो मैसेज है कि जोशी जी शायद सो गए। फोन नहीं उठ रहा लेकिन सुबह सबसे पहले एडमिशन दिलवाने का काम करूँगी। 

दिन में सीवान से दीनबंधु का फोन आया। इंडिया न्यूज़ में मेरे पुराने सहयोगी रहे हैं। सर, आप जो कर रहे हैं, सब जगह चर्चा है, लेकिन आपको अपने यहाँ भी ध्यान देना चाहिए। छपरा में जनता बाजार पर एक लड़का है। 18 साल का है और कोरोना पॉजिटिव है। घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम हुआ है। अब ऑक्सीजन देने के बाद भी उसका ऑक्सीजन लेवल 70 है। मैंने कहा- रात नहीं कट पाएगी। बोला वही तो मैं कह रहा हूं। आप इस बात को अपने डिजिटल प्लैटफॉर्म पर रखिए, मैं जानता हूं मदद हो जाएगी। मैंने तुरंत उस बच्चे की हालत के बारे में बताते हुए लिखा कि पटना में आईसीयू में जगह चाहिए। इसके तुरंत बाद ओमप्रकाश सिंह ने रिएक्ट किया। सर, आपने कहा था कि वक्त कभी कभी इम्तिहान लेता है और आज मेरे सामने वो इम्तिहान है जिसमें फेल होने का ऑप्शन ही नहीं है। मैं कुछ करता हूं। उधर दीनबंधु ने भी अपने सारे घोड़े खोल रखे थे। छपरा के एक गांव से 18 साल के अपने बेटे को लेकर एक पिता पटना के लिए निकला था और उसे नहीं पता था कि उसके बेटे को इलाज मिल पाएगा या नहीं। ओमप्रकाश और दीनबंधु एक-दूसरे के संपर्क में आ गए थे और आखिरकार महावीर हाईटेक हॉस्पिटल के आईसीयू में एडमिशन मिल गया। दीनबंधु ने मैसेज किया – सर धन्यवाद, बच्चा अब बच जाएगा।

दोपहर में एक बजे के आसपास कानपुर से मुझे फोन आया कि लखनऊ में एक महिला हैं, एक नर्सिंग होम में एडमिट हैं लेकिन ऑक्सीजन सिलेंडर ख़त्म होनेवाला है। सिलेंडर रीफिल कराना है। कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।

मैंने उनकी बात अपने फेसबुक वॉल और ट्विटर पर डाली। राजेश सोनी का मैसेज आया- सर आप मेरा नंबर दे दीजिए। जिस किसी को भी चाहिए, हमीरपुर से एक रुपया के रेट पर सिलेंडर भरवा दूंगा। कई और मित्रों ने कई पते दिए जहाँ से सिलेंडर रीफिल करवाया जा सकता था। इसी दौरान मैंने जो संपर्क का नंबर दिया था- किसी ने फोन कर उनको बुलाया और सिलेंडर रीफिल करवा दिया। कौन था? नहीं पता। हां, हमारे आपके बीच का ही कोई होगा। 

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ये जितने भी लोग हैं- मनीष सिंह, विपाशा तिवारी, अनुराग पाठक, कंचन सिंह चौहान, ओमप्रकाश सिंह, आखिर कौन हैं? इनका उस दुख दर्द से क्या रिश्ता है जो इनके किसी अपने से नहीं जुड़ा है? ये सब लोग वे हैं जिनसे देश बनता है। आम आदमी। इंसानियत, अपनेपन और दुख-दर्द के मर्म से भरे हुए। ज़िंदा लोग। अच्छे लोग। अगर मैं ऐसे लोगों की गिनती पर आ जाऊँ तो पिछले हफ्ते भर में हजार से ज़्यादा लोगों के नाम रख सकता हूं, जिन्होंने मिलकर ना जाने कितनी ज़िंदगियों को बचाया है। मैं अकेला इंसान नौकरी की जिम्मेदारियों के साथ-साथ इस फर्ज को भी उठाए चल रहा हूं यह जानते हुए कि मेरे पास जिस उम्मीद से लोग अपनी तकलीफ भेज रहे  हैं, उसको पूरा करने की हैसियत नहीं है मेरी। और जितना भेजते हैं उसका दस फीसदी भी नहीं कर पाता। 

common people helping each other amid hospital bed, oxygen and drug shortage - Satya Hindi

बस को धक्का मारकर मुसाफिरों को मंजिल तक पहुँचाने की सोच ही ग़लत है। बस को ही सही होना चाहिए। बस सिस्टम है जिसपर देश के लोगों की उम्मीदें सवार होती हैं। उन्हें अपने-अपने पड़ाव पर उतरना चाहिए। लेकिन बस बैठी हुई है। ऐसे में वह अव्यावहारिक रास्ता ही बचता है कि धक्का मारो। मेरी कोशिश वही है। मैं तो महज जरिया हूँ। जिन लोगों को इस तरह से इलाज मिल पा रहा है, वह उनलोगों के सामर्थ्य और सद्भाव के कारण है जो मेरे निवेदन पर हर सीमा से आगे जाकर काम पूरा करते हैं। आम लोग। अच्छे लोग। सच्चे लोग। 

दूसरी तरफ इस देश की राजनीति है। दरअसल, अपार संभावनाओं और सद्भाव से भरे इस देश का दुर्भाग्य यहाँ की राजनीति रही है। बौने नायकों से भरी हुई। झूठ-फरेब, पाखंड-प्रपंच और दगाबाजी-धोखेबाजी से भरी हुई। आपने दुनिया में कभी नहीं सुना होगा कि मरीजों के इलाज के समय इतने बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन का संकट खड़ा हो गया हो। 

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दिल्ली के गंगाराम, हरियाणा के फोर्टिस और नोएडा के कैलाश अस्पताल जैसे हाई प्रोफाइल अस्पतालों में भी ऑक्सीजन को लेकर हाहाकार मच गया। एनसीआर के निजी और सरकारी कम से कम दो दर्जन से ज़्यादा अस्पतालों में मरीजों की भर्ती बंद हो गई क्योंकि ऑक्सीजन खत्म हो रहा था। ऐसा संकट क्या प्राकृतिक आपदा है? हरगिज़ नहीं। यह ग़ैर ज़िम्मेदराना रवैया और एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ने की पुरानी जंग खाई सोच के कारण है। पूरे सालभर में केंद्र तो छोड़िए किसी भी राज्य सरकार ने अपने यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं को चुस्त दुरुस्त करने के लिये कुछ किया? पीपीई किट, मास्क और सैनिटाइजर के ऑर्डर ख़ूब गए क्योंकि उसमें चांदी है। 

इस समय ऑक्सीजन सिलेंडर से लेकर रेमडेसिविर इंजेक्शन तक की भयानक कालाबाजारी है। लोग लाख लाख रुपए में रेमडेसिविर खरीद रहे हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर भटक रहे हैं। जिस भी दाम पर मिल रहा है खरीद रहे हैं। मरता क्या ना करता। अब चुनावी रैलियाँ रोकी जा रही हैं। महान जनता की चिंता और उसकी सेवा के उदाहरण रखे जा रहे हैं। चुनाव आयोग को रैलियों पर पाबंदी की सूझी है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का आम आदमी इतना सीधा है कि वो इस शातिर राजनीति की कुटिल चालें समझ नहीं पाता। जिस दिन समझ गया, तंत्र के सारे कल-पुर्जे दुरुस्त हो जाएंगे। दल चाहे कोई भी हो, चरित्र एक ही है। इस देश का आम आदमी चाहे कहीं का भी हो, वो सहृदय और सहज एक-सा ही है।

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राणा यशवंत
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