अपने कार्यकाल के अंतिम दिन शुक्रवार को भारत के निवर्तमान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने वकीलों की संस्थाओं द्वारा दिए गए विदाई समारोह में ठीक ही कहा कि संभवतः वह देश की सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा “ट्रोल” किये जाने वाले सीजेआई होंगे। लेकिन यह स्थिति किसके कारण हुई है? अगर आप मीडिया-प्रेमी होंगे, अगर पद के अनुरूप कुछ पारम्परिक और निषेधात्मक मान्यताओं को तोड़ते हुए अपने को “पब्लिक जज” (जैसा कि उन्होंने इसी समारोह में अपने बारे में बताया) करार देंगे तो स्वतंत्र मीडिया आपके फैसलों का, व्यक्तित्व का और कोर्ट-इतर आचरण का बेबाक विश्लेषण तो करेगा ही।
सीजेआई चंद्रचूड़ आख़िर निशाने पर क्यों हैं?
- विचार
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- 9 Nov, 2024

विदाई समारोह में यह कह कर कि सनलाइट इज द ग्रेटेस्ट डिसइन्फेक्टेंट, जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने मीडिया प्रेम को तो उचित ठहरा लिया होगा लेकिन आलोचकों को और भावी इतिहास को दीर्घकालिक खुराक भी दे दिया है।
अगर रिटायर होने के पूर्व के दो हफ़्तों में आप सार्वजानिक उद्बोधनों में बतायेंगे कि इस स्वतंत्र भारत के सबसे विवादास्पद और अहम् अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद केस पर आप ने फैसला देने के पहले “भगवान” से कैसे प्रेरणा ली तो आपके जुडिशल विजडम (न्यायिक बुद्धिमत्ता) की गुणवत्ता पर सवाल तो उठेंगे ही। इसी तरह अगर आप सार्वजानिक रूप से यह कहेंगे कि आप को इस बात की चिंता रहेगी कि इतिहास आपको कैसे देखेगा, तो आपके फैसलों में किस हद तक “बैलेंसिंग एक्ट” है यह बात कोई भी विवेकशील विश्लेषक कैसे नज़रअंदाज करेगा? क्या 75 वर्षों में किसी अन्य पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने यह सब कहा था?