भारतीय संविधान के आर्किटेक्ट डॉ. बी. आर. आंबेडकर धर्म, क़ानून और राज्य के बीच के संबंधों को लेकर, सैद्धांतिक रूप से मान चुके थे कि "धर्म को निजी क्षेत्र तक सीमित कर दिया जाना चाहिए, और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में क़ानून धर्म से ऊपर होना चाहिए। न्यायपालिका को धर्म के किसी भी प्रभाव से स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए ताकि कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित हो सके।" लेकिन संभवतया वो आने वाले भारत को नहीं देख सके थे जहाँ संविधान के ‘अभिरक्षक’ सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश स्वयं इस सिद्धांत की अनदेखी करने वाला था।