नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 के जरिए उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों और पारसियों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का रास्ता प्रशस्त किया जा रहा है, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न से त्रस्त होकर 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले, भारत आ चुके हैं। इस विधेयक को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने 9 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पेश किया है।
नागरिकता क़ानून: अमित शाह जी, आप झूठ पर झूठ बोल रहे हैं!
- विचार
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- 16 Dec, 2019

गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि नागरिकता (संशोधन) क़ानून, 2019 को अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए लाया गया है। लेकिन वास्तव में इस क़ानून के जरिए आरएसएस/बीजेपी के शासकों ने संविधान की मूल-आत्मा, देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र और उसकी बुनियाद पर गहरा आघात किया है।
यह विधेयक लोकसभा में आरएसएस/बीजेपी को हासिल विशाल बहुमत की बदौलत बिना किसी परेशानी के, आठ घंटे से भी कम समय में पारित हो गया। 2 दिन बाद, 11 दिसम्बर को राज्य सभा ने केवल 6 घंटों में इस विधेयक को मंज़ूरी देकर क़ानून बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया। इस तरह आरएसएस/बीजेपी के शासकों ने संविधान की मूल-आत्मा, देश के लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष चरित्र और उसकी बुनियाद पर गहरा आघात किया है।