देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पर लगे यौन शोषण के मामले में क्या सुप्रीम कोर्ट की जाँच कमेटी ने ग़लती की है। क्या मुख्य न्यायाधीश को बिना शिकायतकर्ता की बात को पूरी तरह सुने क्लीन चिट दे दी गई है? क्या सुप्रीम कोर्ट की जाँच कमेटी ने ऐसा करके सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा भंग की है और क्या इस फ़ैसले से सुप्रीम कोर्ट की साख गिरी है? और यह शक बना रह गया है कि यौन शोषण मामले में कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है।

अरुण शौरी का कहना था कि विशाखा गाइडलाइंस के हिसाब से जाँच कमेटी की अध्यक्षता किसी महिला जज को करनी थी और इसमें किसी बाहर की अति प्रतिष्ठित महिला को सदस्य के तौर पर होना था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाते समय इन दोनों ही बातों का ख़्याल नहीं रखा तो क्या यह कहा जाए कि सुप्रीम कोर्ट ख़ुद ही क़ानून बनाता है और ख़ुद ही उसका पालन नहीं करता।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।