उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी क्षेत्र में बरसात के मौसम में तो बादल फटने, ग्लेशियर टूटने, बाढ़ आने, ज़मीन दरकने और भूकंप के झटकों की वजह से जान-माल की तबाही होती ही रहती है। ऐसी आपदाओं का कहर कभी उत्तराखंड, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तो कभी पूर्वोत्तर के राज्य अक्सर झेलते रहते हैं। लेकिन यह पहला मौक़ा है जब सर्दी के मौसम में उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने के रूप में कुदरत का कहर बरपा है।

कई परियोजनाओं के तहत धड़ल्ले से साफ़ किए जा रहे जंगल और पहाड़ों को काटने के लिए किए जा रहे विस्फोट ही वहाँ आपदा को न्योता दे रहे हैं। चमोली ज़िले में ग्लेशियर टूटने से आई आपदा को इसी रूप में देखा जा सकता है।
आश्चर्यजनक रूप से सर्दी के मौसम में घटी यह घटना एक नए ख़तरे की ओर इशारा करती है। कहने को तो यह ख़तरा प्राकृतिक है और इसे जलवायु चक्र में हो रहे परिवर्तन से भी जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन असल में यह मनुष्य की खुदगर्जी और विनाशकारी विकास की भूख से उपजा संकट है।