विपक्षी नेताओं के घरों और ठिकानों पर सरकारी एजेंसियों के छापों की सूची में एक और नाम जुड़ गया है। यह नाम है आप नेता मनीष सिसोदिया का। उन पर आरोप है कि उन्होंने आप सरकार की आबकारी नीति में बदलाव कर शराब व्यापारियों को ग़लत तरह से फ़ायदा पहुँचाया और सरकारी ख़ज़ाने को चूना लगाया। दिल्ली के नये उप राज्यपाल ने पद की ज़िम्मेदारी सँभालते ही मुख्य सचिव से रिपोर्ट तलब कर सीबीआई जाँच के आदेश दे दिये थे। बाद में आबकारी विभाग के 11 अधिकारियों को इसी मामले में उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने सस्पेंड भी कर दिया था।
ज़ाहिर है कि यह मामला आप के जी का जंजाल बन गया है। ख़ासतौर पर तब जबकि इस विभाग के मंत्री मनीष सिसोदिया के प्रेस कांफ्रेंस कर यह कहने के बाद कि शराब नीति में जो भी गड़बड़ी है उसके लिये पूर्व उप राज्यपाल अनिल बैजल ज़िम्मेदार हैं क्योंकि उन्होंने आख़िरी समय में आप सरकार की भेजी फ़ाइलों में हेर फेर किया था और बीजेपी के कुछ नेताओं को फ़ायदा पहुँचाया था। यानी मनीष सिसोदिया ने खुद ही यह मान लिया कि शराब नीति में कुछ न कुछ गड़बड़ तो है। उन्होंने यह मान लिया था कि उप राज्यपाल की वजह से ही सरकारी ख़ज़ाने में जितना राजस्व आना चाहिये वो नहीं आया यानी चूना लगा। जबकि इसके पहले वो कह रहे थे कि शराब नीति में बदलाव के कारण राजस्व में इज़ाफ़ा हुआ और सरकार को अतिरिक्त 2000 करोड़ का लाभ मिल सकता है। तो क्या ये सारे दावे झूठे थे?
लेकिन छापे से ज़्यादा यह मामला राजनीति का है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही विपक्षी नेताओं, दलों और सरकारों को सरकारी एजेंसियों ने निशाना बना रखा है। 2019 के बाद ऐसे छापे और विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ काफ़ी बढ़ी हैं। महाराष्ट्र में ही तीन बड़े नेता जेल में हैं। पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, नवाब मलिक और शिवसेना के नेता और उद्धव ठाकरे के करीबी संजय राउत सलाख़ों के पीछे हैं। और उन्हें ज़मानत भी नहीं मिल रही है। दिल्ली में केजरीवाल के मंत्री सत्येंद्र जैन दो महीने से जेल की हवा खा रहे हैं। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार निशाने पर है। ठाकरे सरकार को गिराने के बाद अब उसका नंबर है।
नीतीश किसी तरह से बचे हुए थे, लेकिन अब बीजेपी से नाता टूटने के बाद कब तक बचेंगे, यह चर्चा ज़ोरों पर है। लिहाज़ा मनीष पर छापा और आगे की कार्रवाई विपक्ष को लगातार कमजोर करने की सरकार की कोशिशों का ही एक और उदाहरण है।
आज की तारीख़ में समूचा विपक्ष साझी चिंता के बाद भी बिखरा पड़ा है। न उनके पास कोई एक नेता है जो सबको एक छत के नीचे ला सके और न ही कोई एक कार्यक्रम। ये हालात मोदी को बहुत सूट करते हैं। वो चाहेंगे कि विपक्ष बिखरने के साथ-साथ बदनाम भी रहे।
ये छापे ये साबित करने के लिये भी हैं कि जो भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने का दावा करते थे और जिन्होंने अन्ना का आंदोलन चलाया वो भी दूसरे नेताओं की तरह सत्ता में आने के बाद भ्रष्ट हो गये हैं। अब ये भी सरकारी तंत्र का इस्तेमाल कर अनाप-शनाप पैसे कमा रहे हैं। पंच तारा होटलों में टिकते हैं। विमानों में सवारी करते हैं। जो दो कमरों के फ़्लैट में रहने की वकालत करते थे उन लोगों ने सरकार का करोड़ों रुपये ख़र्च कर अपने निवास को महल में तब्दील कर लिया है। राजनीति बदलने वाले खुद इतना बदल गये हैं कि पहचानना मुश्किल हो गया है। लिहाज़ा उनको अलग क्यों देखा जाये। ये भी तो बाक़ी की तरह हमाम में नंगे हैं। ईमानदारी का लबादा ओढ़ने वाले पूरी तरह से बदल गये हैं। बीजेपी 2015 से ही आप की ऐसी छवि बनाने में जुटी है।
बीजेपी की तकलीफ ये है कि जब पूरे देश में मोदी के अश्वमेघ के घोड़े को कोई रोकने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था तब राजनीति के नौसिखियों ने मोदी के करिश्मे और शाह की चाणक्य नीति को ऐसी पटकनी दी कि बीजेपी दिल्ली में 32 सीट से घट कर 3 पर आ गयी। और आप को 70 में से 67 सीटें मिली थीं जो ‘न भूतों, न भविष्यत्’ वाली स्थिति थी। उसके बाद आप को कमजोर करने के लिये मोदी सरकार ने ढेरों काम किये लेकिन वो 2020 में एक बार फिर बंपर बहुमत से जीत कर आयी। 2022 में तो उसने पंजाब में चमत्कार ही कर दिया और 92 सीटें जीत कर राजनीति की धुरंधर खिलाड़ियों की दुकानें तक बंद करवा दी। प्रकाश सिंह बादल और अमरिंदर सिंह जैसे दिग्गज चुनाव हार गये। ये करिश्मा अगर ऐसे ही जारी रहा तो बीजेपी के मन में यह डर बैठना स्वाभाविक है कि कहीं ये चमत्कार गुजरात और हिमाचल प्रदेश में न दोहरा दिया जाये।
गुजरात के स्थानीय निकाय के चुनावों में आप ने सूरत जैसे बीजेपी के बड़े गढ़ में सेंध लगा दी है। बीजेपी पिछली बार सिर्फ छह शहरों में अच्छे प्रदर्शन की वजह से सरकार बना पायी थी। आप गुजरात में अभी भी शहरों की ही पार्टी है। गाँवों में उसकी जड़ें नहीं हैं। गाँवों में कांग्रेस की हालत बेहतर है। और आप जितना बेहतर प्रदर्शन करेगी उतना ही बीजेपी को नुक़सान हो सकता है। ऐसे में बीजेपी की ये पूरी कोशिश होगी कि आप गुजरात में अपनी जड़ें न जमा सके। सीबीआई के छापों को इस संदर्भ से जोड़ कर देखना चाहिए।
फिर बीजेपी को यह भी डर लग रहा है कि एमसीडी के चुनाव में भी आप बीजेपी को तगड़ी शिकस्त दे सकती है। यही कारण है कि एमसीडी के चुनावों को टाल दिया गया है और बहाना यह बनाया गया है कि तीनों एमसीडी निकायों को एक करने की प्रक्रिया चल रही है।
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