बेटियों के अधिकारों, उनकी रक्षा, मान सम्मान व उनकी तरक़्क़ी को लेकर जितना ढिंढोरा हमारे देश में पीटा जाता है या यूँ कहें कि जितना दिखावा किया जाता है उतना किसी अन्य देश में नहीं किया जाता। यदि हमारा समाज वास्तव में पैतृक संस्कारों, उपदेशों, भाषणों व कन्या हितैषी सरकारी योजनाओं के अनुसार देश की बेटियों का पालन पोषण कर रहा होता, उसे पूरा मान सम्मान दे रहा होता, बेटी को धर्म-जाति, ग़रीब-अमीर, ऊंच-नीच के चश्मे से न देखा जाता तो आज घर घर में रानी लक्ष्मी बाई, ज्योति बाई फूले, फ़ातिमा शेख़, बेगम हज़रत महल, रज़िया सुल्तान, इंदिरा गाँधी, सरोजनी नायडू, लक्ष्मी सहगल से लेकर कल्पना चावला तक जैसी महिलायें पैदा होकर देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन कर रही होतीं।
ये 'बेटी बचायेंगे' या इनसे 'बेटी बचायें'?
- विचार
- |
- |
- 13 Jan, 2022

बुल्ली बाई ऐप पर महिलाओं की नीलामी करने वाले युवा किस दिशा में जा रहे हैं। राजनेता भी महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक बयान देते रहते हैं। इनसे बेटी बचाने की उम्मीद की जाए?
कन्या हितों की बात करने का ढोंग करने वाले हमारे ही देश में औरतों को भूतनी और चुड़ैल बताकर उसे प्रताड़ित किया जाता है। यहां तक कि जान से भी मार दिया जाता है।
बलात्कार, वीभत्स बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, नाबालिग़ और किशोरियों के साथ बलात्कार और बलात्कार के बाद हत्या के जितने मामले हमारे देश में होते हैं, पूरे विश्व में कहीं नहीं होते। और इसी कन्या असुरक्षा के भय से तमाम अभिभावक अपनी बेटियों को स्कूल-कॉलेज भेजने से भी कतराते हैं।