‘इंडिया’ की मुंबई बैठक से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को सुलगा दिया है। मायावती ने एक ट्वीट के ज़रिए बता दिया है कि उनकी पार्टी किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी और लोकसभा तथा उसके पहले होने वाले चार राज्यों में अकेले चुनाव लड़ेगी। मायावती लगातार कहती रही हैं कि वो ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल नहीं होंगी। तो फिर अकेले चुनाव लड़ने के बारे में नए सिरे से सफ़ाई देने की ज़रूरत क्यों पड़ी। क्या पर्दे के पीछे कोई और खेल चल रहा है?
मायावती 2007 के अपने सुनहरे दिनों को याद करती हैं, जब बहुजन समाज पार्टी को अपने दम पर उत्तर प्रदेश विधान सभा में बहुमत मिल गया था। प्रदेश और देश में अब 2007 जैसा माहौल नहीं है। तब उत्तर प्रदेश के सवर्ण ख़ासकर ब्राह्मण मायावती के समर्थन में खड़े हो गए थे। मायावती अच्छी तरह जानती हैं कि अब वैसा जातीय समीकरण संभव नहीं है। फिर भी वो अपने अतीत की याद दिलाकर क्या हासिल करना चाहती हैं।
मायावती के ताज़ा बयान में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव का ज़िक्र बहुत महत्वपूर्ण है। कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में छिटपुट जीत के बावजूद उनकी पार्टी कभी राष्ट्रीय स्तर पर जगह नहीं बना सकीं। कई राज्यों में उनके गिने चुने विधायकों को दूसरी पार्टियाँ ले गयीं। इसका मलाल हमेशा दिखाई देता है।
मायावती की राष्ट्रीय महत्वकांक्षा
बहुजन समाज पार्टी के समर्थक हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी रहे हैं। इन राज्यों में उनकी पार्टी के गिने चुने विधायक जीतते रहे हैं। लेकिन कोई भी राष्ट्रीय गठबंधन उन्हें सभी राज्यों में हिस्सेदार बनाने के लिए तैयार दिखाई नहीं देता है। मायावती को कभी भी राष्ट्रीय नेता का दर्जा भी नहीं मिला। लेकिन प्रधानमंत्री बनने की उनकी आकांक्षा कई बार सामने आ चुकी है। उनकी पार्टी के एक प्रमुख नेता का कहना है कि जब तक कोई गठबंधन उन सभी राज्यों में सीट साझेदारी के लिए तैयार नहीं हो, जिन राज्यों में बीएसपी का आधार मौजूद है, तब तक किसी के साथ जाने की जगह पार्टी अकेले चलेगी।
बीएसपी भले ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बहुत कम सीटों पर जीत हासिल करे लेकिन इसके उम्मीदवारों के चलते कई सीटों पर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ जाएगी।
बीएसपी की ढहती दीवार
2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से समझौता के कारण उनकी पार्टी को लोकसभा की 10 सीटें मिल गयी थीं। हालाँकि सपा सिर्फ़ 5 सीटें जीत पायी। चुनाव के तुरंत बाद मायावती ने गठबंधन को ख़त्म कर दिया। सपा एक समय पर कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ चुकी है। प्रदेश के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि दोनों पार्टियाँ सीबीआई और केंद्रीय एजेंसियों से डरी हुई हैं। सबसे ज़्यादा सीटों वाला राज्य होने के कारण बीजेपी की ख़ास नज़र इस राज्य की राजनीति पर टिकी हुई है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यहाँ जो भी समझौता होगा, लोकसभा चुनाव के ठीक पहले होगा।
अपनी राय बतायें