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सुनाक क्या ब्रिटेन को संकट से निकाल पायेंगे?

कंज़र्वेटिव पार्टी की आपसी गुटबाज़ी और विपक्षी पार्टियों की झुँझलाहट से परे ऋषि सुनाक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाने की तुलना ओबामा के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से की जा रही है। भारतीयों पर राज करने वाले देश पर एक भारतवंशी राज करने जा रहा है।
शिवकांत | लंदन से

42 वर्षीय ऋषि सुनाक ब्रिटेन के पहले भारतवंशी और पिछले 210बरसों के सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गए हैं। पिछले महीने हुए पार्टी चुनाव में वे सदस्यों और सांसदों का बहुमत हासिल नहीं कर पाए थे। उन्हें हरा कर प्रधानमंत्री बनीं लिज़ ट्रस को 'क़र्ज़ उठाओ और ख़र्च करो' की आर्थिक तंगी के समय अनुचित नीतियों से वैसा ही आर्थिक संकट खड़ा हो गया था जिसकी ऋषि सुनाक ने चेतावनी दी थी।

ट्रस सरकार की नीतियों की नाकामी ने ऋषि सुनाक की आर्थिक समझबूझ की साख को और बढ़ाया और पार्टी नेता के इस बार के चुनाव में वे कंज़र्वेटिव पार्टी के लगभग दो तिहाई सांसदों का समर्थन हासिल करके निर्विरोध ही चुन लिए गए।

इंग्लैंड के दक्षिणी बंदरगाह साउथैम्पट में जन्मे और छात्रवृत्ति लेकर ऑक्सफ़र्ड और स्टेनफ़र्ड विश्वविद्यालयों में पढ़े ऋषि सुनाक के दादा और दादी पंजाब के गुजराँवाला और दिल्ली के थे और काम के लिए केन्या और तंज़ानिया गए थे। उनके नाना तंज़ानिया के तांगानिका प्रांत में ब्रितानी सरकार के टैक्स अफ़सर थे। सुनाक के पिता डॉक्टर थे और माँ दवा विक्रेता थीं।

साठ के दशक में चली अफ़्रीकी राष्ट्रवाद की लहर से परेशान होकर सुनाक परिवार को अपना सब-कुछ छोड़कर ब्रिटेन आना पड़ा और नए सिरे से जीवन शुरू करना पड़ा। उनके पिता ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में डॉक्टरी करना और माँ ने फ़ार्मेसी चलाना शुरू किया।

अपने बचपन की बात करते हुए ऋषि सुनाक कड़ी मेहनत और संघर्ष से भरे इन दिनों को अपनी कामयाबी का राज़ बताते हैं। उनकी शादी इन्फ़ोसिस के संस्थापक और दूरदर्शी उद्योगपति नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति से हुई। अक्षता ब्रिटेन की बेहद संपन्न महिलाओं में गिनी जाती हैं और कई कारोबार चलाती हैं।

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ऋषि सुनाक ने भी अपना पेशेवर जीवन विश्व के सबसे प्रतिष्ठित व्यावसायिक बैंक गोल्डमन सैक्स में पार्टनर के रूप में शुरू किया था। उसके बाद कुछ निवेश फंड चलाए और कंज़र्वेटिव पार्टी की सदस्यता को लेकर 2015 में उत्तरी इंगलैंड के शहर यॉर्क के रिचमंड चुनाव क्षेत्र से सांसद बने जो कंज़र्वेटिव पार्टी के पूर्व नेता विलियम हेग का चुनाव क्षेत्र था। राजनीति में भी ऋषि ने चमत्कारिक प्रगति की और सात वर्षों के भीतर ही आम सांसद से कोषमंत्री और वित्तमंत्री के पदों पर रहते हुए अब प्रधानमंत्री बन गए हैं।

उनकी इस प्रगति में प्रतिभा के साथ-साथ संयोग का भी हाथ माना जा सकता है। मिसाल के तौर पर 2019 में बनी बोरिस जॉन्सन की सरकार में पाकिस्तानी मूल के साजिद जाविद वित्तमंत्री थे जो निवेश बैंकर होने के नाते अपनी आर्थिक सूझबूझ के लिए जाने जाते थे। उन्होंने प्रधानमंत्री के कहने पर अपने आर्थिक सलाहकारों को हटाने से इंकार कर दिया। इसलिए प्रधानमंत्री जॉन्सन ने साजिद जाविद को हटा कर फ़रवरी 2020 में ऋषि सुनाक को वित्तमंत्री बना दिया जो साजिद जाविद के उपमंत्री थे। 

ऋषि सुनाक के वित्तमंत्री बनते ही देश में कोविड महामारी फैल गई जिसके दौरान कारोबारों को ठप होने और लोगों को बेरोज़गार होने से बचाने के लिए ऋषि सुनाक ने घर बैठे वेतन देने वाली फ़रलो योजना शुरू की जिसकी वजह से उनका बड़ा नाम हुआ और वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखे जाने लगे।

लेकिन लगभग 188 साल पुरानी और दुनिया की सबसे कामयाब और पारंपरिक मानी जाने वाली पार्टी में दो तिहाई सांसदों का समर्थन केवल संयोग के बल पर हासिल नहीं किया जा सकता। इसके पीछे ऋषि सुनाक की योग्यता, वाक्पटुता, विनम्रता और प्रखरता है जिसे लिज़ ट्रस के साथ हुए मुकाबले में मशीनीपन कह कर अस्वीकार कर दिया था। लेकिन ट्रस सरकार की आर्थिक नीतियों से संकट गहरा जाने के बाद ऋषि का वही मशीनीपन लोगों को उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी नज़र आने लगा है। उनके भारतीय मूल का होने और आस्थावान हिंदू होने को लेकर जो सवाल दबी ज़बान में उठाए जा रहे थे वे अब पार्टी सदस्यों के जनादेश और आम जनादेश के बिना थोप दिए जाने के सवालों में बदल रहे हैं जिन्हें मुख्य रूप से विपक्षी पार्टियाँ उठा रही हैं। 

कंज़र्वेटिव पार्टी की आपसी गुटबाज़ी और विपक्षी पार्टियों की झुँझलाहट से परे ऋषि सुनाक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाने की तुलना ओबामा के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से की जा रही है। भारतीयों पर राज करने वाले देश पर एक भारतवंशी राज करने जा रहा है।
परिवर्तन का पहिया एक पूरा चक्कर काट चुका है। यह ब्रिटेन में बसे भारतवंशियों के लिए ही नहीं दुनिया भर के भारतवंशियों और भारतीयों के लिए भी यह कम गौरव की बात नहीं है। वैसे यूरोप के देशों में भारतवंशी इससे पहले भी प्रधानमंत्री बन चुके हैं। पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंतोनियो कोस्टा गोवा मूल के हैं। आयरलैंड में मराठी मूल के लियो वराडकर प्रधानमंत्री रह चुके हैं। लेकिन अभी तक किसी यूरोपीय देश का भारतवंशी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ जो स्वयं को आस्थावान हिंदू भी स्वीकार करता हो।
Britain economic crisis and Rishi Sunak - Satya Hindi

तो क्या यह मान लिया जाए कि कंज़र्वेटिव पार्टी का वैचारिक कायाकल्प हो गया है? कभी अपने नस्लवादी विचारों के लिए और आज भी अपनी आप्रवासी विरोधी और सांस्कृतिक समरसता विरोधी नीतियों के लिए जानी जाने वाली पार्टी अब उदारवादी और प्रगतिशील हो गई है?

नहीं। कंज़र्वेटिव पार्टी के पास इस समय ऋषि सुनाक को चुनने के सिवा कोई चारा नहीं था। आर्थिक सूझबूझ की साख रखने वाली इस पार्टी की लोकप्रियता इस समय अपनी लोकप्रियता के न्यूनतम बिंदु पर है। जो सुनहरी सपने दिखा कर इस पार्टी ने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकाला था वे दुस्वप्न में बदलते जा रहे हैं। 

यदि आम चुनाव कराए जाते तो पार्टी का सूपड़ा साफ़ हो सकता था और मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए पार्टी के पास ऋषि सुनाक से बेहतर आर्थिक सूझबूझ की साख वाला नेता नहीं था। इसलिए पार्टी ने अपनी गुटबाज़ी और चरम विचारधाराओं को भूलकर सुनाक को नेता मान लिया है।

नेता चुने जाने के बाद राष्ट्र के नाम दिए छोटे से संदेश से साफ़ झलकता है कि ऋषि सुनाक भी महसूस कर रहे हैं कि उनका यह ताज चाहे जितना गौरवशाली और ऐतिहासिक हो पर काँटों का ताज है। उन्हें सबसे पहले मुद्रा और बांड बाज़ार में ब्रितानी सरकार और अर्थव्यवस्था की खोई साख को बहाल करना है ताकि तेज़ी से बढ़ती कर्ज़े के ब्याज की दरें काबू में आएँ। उसके बाद महँगाई के कारण ऊँचे से ऊँचे वेतनों की माँग करते कर्मचारी संघों को कम वेतनों में काम चलाने के लिए राज़ी करना है। संसाधनों की तंगी से परेशान स्वास्थ्य, शिक्षा और जनकल्याण जैसे विभागों को और किफ़ायत और कटौतियों के लिए तैयार करना है ताकि ब्रिटेन के तेज़ी से उठते कर्ज़े के पहाड़ को बढ़ने से रोका जा सके। 

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भारत जैसे देशों के साथ व्यापार समझौते करके यूरोपीय संघ से बाहर आने की वजह से हो रहे व्यापार के नुकसान की भरपाई करनी है। ये सारे काम उन्हें अपनी पार्टी की गुटबाज़ी और उनकी जड़ें काटने की ताक में बैठे नेताओं को एकजुट रखते हुए करने हैं और पार्टी को लोकप्रियता को बहाल करना है ताकि दो साल बाद होने वाले चुनाव में जीत हासिल हो सके।
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