भारत में जाति आधारित जनगणना अंतिम बार 1931 में हुई थी। उसी आधार पर मंडल कमीशन ने अनुमान लगाया था कि देश की 52 प्रतिशत आबादी पिछड़े वर्ग की है। साथ ही सिफ़ारिश भी की थी कि नए सिरे से जातीय जनगणना कराई जाए, जिससे वंचित तबक़े की वास्तविक संख्या के बारे में जानकारी हासिल की जा सके। इसके अलावा 17 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और 7.5 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की मानी जाती है। इसमें ओबीसी की संख्या बढ़ने की संभावना है क्योंकि तमाम जातियों को समय-समय पर सामान्य से ओबीसी वर्ग में शामिल किया जाता रहा है। अगली जनगणना होने को है। सरकार पर दबाव बन रहा है कि जातीय जनगणना कराई जाए, वहीं वह रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस तैयार कराने की घोषणा कर चुकी है।
कहीं जातीय जनगणना से बचने के लिए तो नहीं है एनआरसी?
- विचार
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- 22 Dec, 2019

यह संदेह होना लाज़मी है कि जनगणना क़रीब आते ही सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस का नाटक क्यों शुरू कर दिया है?
2011 की जनगणना के पहले समाजवादी विचारधारा के दलों ने तत्कालीन सरकार पर ज़ोरदार दबाव बनाया कि जाति आधारित जनगणना कराई जाए। उसका मक़सद यह था कि कंप्यूटर के इस काल में आसानी से ये सटीक आँकड़े आ सकेंगे कि पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की संख्या कितनी है। पिछड़े वर्ग की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए जातीय आधार पर पहचान की गई थी, इसलिए यह जान लेना अहम हो जाता है कि किस जाति की क्या स्थिति है।